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Wednesday, 10 July 2013

GHAZAL

देखा कुदरत का ऐसा कहर ना  कभी।
देखा गुस्से का ऐसा असर ना   कभी।  

यूँ  तो  आना  व  जाना  चला  ही  करे,
देखा होना यूँ  अंतिम सफ़र  ना कभी।

मार  डाले  न  छोड़े  किसी   भी  तरह,
देखी लहरों  में  ऐसी  लहर ना   कभी।

लेखनी  लिख   ग़ज़ल-गीत ऐसे  सदा,
हों   मुखर भाव  टूटे  बहर  ना  कभी।

कुछ  करें अब  असरदार  यारो  उठो,
बद्विचारों  को  लीले  ज़हर ना  कभी।

हों  'सहज'  जिंदगी जी लें जी भर सभी,
तू  बुराई  पे  हरगिज   ठहर  ना   कभी।   
-डा . रघुनाथ मिश्र 'सहज' 


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