डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' की चुनिंदा ग़ज़लें:
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है भविष्य भी, वर्तमान का ही विस्तारित.
कल होता है, सिर्फ आज से ही निर्धारित.
अपमानित चेक - वचन पत्र - सिक्के,
तीनों में, सिक्के चुनना ही, सर्वोचित.
भोजन - पानी - हवा जरूरी माना पर,
बहुत जरूरी है, ए सब हों, बेलाक्षित.
दिल है अगर साफ, मत हो बेकल,
चाहे जितनी जगह, हुआ तू आरोपित.
क़ुदरत की है भेंट, सभी को ए धरती,
मत बोझिल हो, कहीं नहीं तू विस्थापित.
निर्णित जो पहले, पूरा कर ले पहले,
छोड़ अभी का,आगे का मत कर निस्तारित.
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हर्ज़ नहीं है, करें कमाई, जोड़ें - भोगें धन.
रहे मगर ए पाक-साफ,सुथरा-उजला जीवन.
श्रम की कीमत क्या है, समझ जरूरी है.
बिना किये खाया-पीया, है झुलसाता तन-मन.
चोरी - छीनाझपटी - हेराफेरी-धोखाधड़ी सभी,
चुक जाते हैं, बाकी रह जाता है, रीतापन.
दिल व्यापक और सोच संकुचित, बेमानी,
बीते काले दिन की यादें, छोड़ मिटे उलझन.
जैसे कर्म-विचार। छाप है वही आत्मा पर,
सच्चाई के लिये देख, अपना ही दिल दर्पन.
सीमित किया हुआ है खुद को, जाति-धर्म से,
तोड़ सरहदें - हदें सभी, तो बने गगन.
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झरने - जंगल - नदी, यहाँ भी और वहाँ भी,
सौ वर्षों की शदी , यहाँ भी और वहां भी.
रहो अकेले, बंद रहें, खिड़की - दरवाजे,
तुम्हें भला क्या पड़ी, यहाँ भी और वहां भी.
शर्म-ओ- हया हटी, अस्मत की खाक उड़ी,
विवश आंख है मुदी, यहाँ भी और वहां भी.
सबकी लाचारी - बदहाली - मुश्किल -उसकी.
होती है गुदगुदी, यहाँ भी और वहां भी.
सुरा -सुंदरी -ऐश खूब, तो पाप-पुन्य क्या,
क्या है नेकी -बदी , यहाँ भी और वहां भी.
उनका जीवन कटा, हवा का एक झोंका सा,
मिरी जिंदगी लदी, यहाँ भी और वहां भी.
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बेटा बीमार है.
महंगा उपचार है.
जिंदगी पहाड़ सी,
बोझिल परिवार है.
सपना सुखों का,
हुआ त र-तार है.
सूझती डगर नहीं,
घना अंधकार है.
जियें तो जियें कैसे,
सांस भी उधार हैं.
कामगार है भूखा,
थोड़ी पगार है.
जवानी है घायल,
बचपन लाचार है.
जीवन संग्राम में,
भारी संहार है.
बाप ने औसाद में,
छोड़ा संसार है.
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-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
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