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Sunday 26 October 2014

मेरा एक अभी उपजा मुक्तक:


आज कुछ वक़्त,बदला सा लगे है.
वह भला इंसान, पगला सा लगे है.
आंख जैसी कल थी, वैसी है मगर,
सूर्य का प्रकाश,धुंधला सा लगे है.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

शुभ संध्या-संदेश:


मुक्तक-मात्रा भर-11
0000000000
हाथ बटाओ मीत.
हम जायेंगे जीत.
प्यार से निकलेगा,
सुन्दर-सुमधुर गीत.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Thursday 23 October 2014

शुभ संध्या संदेश-मुक्तक-अभी का:


शुभ संध्या लाये जीवन, में खुशियों की बारात.
नहीं लगे भूले से हमसे, अपनों को आघात.
सुख-दुख में हर पल हर क्षण,हम हों सारे एक,
कभी न आये फूटपरस्ती, हो न कभी आपात.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'






एक ताज़ा ग़ज़ल-दीपमालिका के पावन पर्व पर आप सभी को सादर भेंट .

धनतेरस और दीवाली की, आप व आपके स्वजनों को, हार्दिक बधाई -इस संदेश के साथ:
मेरी ताज़ा ग़ज़ल:
000
अंधियारे को दूर भगाने, का अवसर है.
विद्वेषों के महल, ढहाने का अवसर है.
हो दुश्मन हावी, हमको जकड़े फिर से,
देश-प्रेम का अलख,जगाने का अवसर है.
आपस में हम रहें सदा, गुलदस्ते सा बन,
ऐसा इक माहौल, बनाने का अवसर है.
हृदयों का इक बाग़ लगे, अब इस जग में,
अब यह अनहद गीत, सुनाने का अवसर है.
निसचय कर लेखनी, सृजन में हो संदेश,
हृदयों को इक संग, मिलाने का अवसर है.
पड़े हुए हैं आलस में, जो बढ़हवाश हो कर,
अभी नींद से उन्हें, जगाने का अवसर है.
नेता जितने भूल गये, आश्वाशन-वादे-करतब को,
अभी वोट से, याद दिलाने का अवसर है.
किसी परिन्दे के पर, काट दिये जिसने भी अब,
उसे पकड़ अब, सबक सिखाने का अवसर है.
बगिया को सहरा, करनेवाले ज़ालिम को,
अब मिल-जुल कर, धूल चटाने का अवसर है.
खुसहाली में, ज़हर घोल खुश होने का,
अबसे चलन, मिटाने का अवसर है..
आती थी बहार तब, जिन सहराओं में ,
'सहज' वहीँ फिर,फूल खिलाने का अवसर है.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
 शुभ दीपावली-पूरी दुनियाँ के हर गरीब-अमीर-खास-आम को मेरी और परिवार की ओर से. इस बार कुछ इस तरह मनाएं- यह प्रकाशपर्व कि, हमारे दिलों से गरीब-अमीर-ऊंच-नीच-जाति-धर्म-सम्प्रदाय जैसे भेद-भावों के गढ़-मठ सभी ढहा दिये जाएं. सीमाविहीन दुनियाँ के स्थापना की नीव रक्खें- इस बार दिवाली में और परछिद्रान्वेषण की परंपरा को नेस्तनाबूद कर, सबमें अछाइयों को ही ढूंढें. नकारात्मकता को अलविदा कह दें और प्यार, से एक वृहद संयुक्त परिवार के रूप में, सभी भारतवासी रहना शुरू करें. सदाशयता भोजन में-प्रेम नाश्ते में-आदर भाव बड़ों के प्रति-प्यार छोटों के प्रति और घृणा से सदैव के लिये मुक्ति-ऐसा हमारा मिशन हो-अबसे जीवन भर के लिये. अवसर मिला है-रूठों को मनाने का-बिछड़ों को साथ लेने का-दुखियों को गले लगाने का-अकेलेपन से तप्त जन के आंसू पोछने का और देश की दरिद्रता हटाने का-जमाखोरों को बेनकाब कर उनसे हमारा हक़ छीन लेने का.ऐसे अनेक हैं जिन्हें सहारे की जरूरत है-उनको महसूस कराएं की इतने बड़े देश में-सवा अरब देशवासियों में कोई भी बेसहारा और अकेला नहीं और यदि ऐसा है तो हम सब उसे अपना सगा महसूस कराने का अभियां चलाएं. किसी भी पर्व का यही उद्देश्य होना चाहिये न कि सिर्फ खाना-पीना-मस्त रहना और स्वयं से अलग कुछ नहीं सोचना. सोने और खाने का नाम जीवन कदापि नहीं-जीवन नाम है अनवरत आगे बढ़ते रहने और सबको साथ लेकर चलने की अटूट लगन का. आइये आज जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें-एक ऐसा लक्ष्य, जिसमें एक सबके लिये -सब एक के लिये-सब सभी के लिये. तब पूरा होगा इस पुनीत पर्व का उद्देश्य. लक्ष्मी पूजा से नहीं-कर्म और सद्भाव से खुश होंगी. .देखें किसे अजीर्ण हुआ है और किस घर में भात नहीं' यदि ऐसा करने का अबियान छेड़ें और लक्ष्य तक पहुंचने से पूर्व चैन से नहीं बैठें तो आज के पर्व कि यही असली प्रासंगिकता होगी
और पर्व मनाने क़ा उद्देश्य भी पूर्ण होगा.
शुभेच्छु,
डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Monday 21 April 2014

'सहज' के चुनावी   दोहे :

मीठी -  मीठी   गोलियां,   देकर   रहे    रिझाय।
आज  नहीं  तो फिर नहीं, मसला लियो बनाय।

यह  जनता  भोली  बड़ी, लो  इसको फुसलाय।
जम   करके   वादे   करो,  वोट  लेउ  डलवाय।

आश्वासन   की   आँधियाँ,  उड़ा  रहीं   ईमान।
देशभक्त   बन   पनप  रहे, आतंकी- बेईमान।

पहले जमकर सोचि  लै,फिर  कीजै  मतदान।
इधर-उधर की छोड़ि  कै, केवल दिल की मान।

पेशेवर    नेता    ठगे,   बन   कर   भाई - पूत।
नोट  -  वोट  -  व्यापर की,  जड़ें हुईं मजबूत।

वादे  में  घ -जल -सड़क, भोजन-पानी-खेत।
वोटर  ज्यूँ का   त्यूं  रहा , गइ  नेता की चेत।

दिखा  रहे  हैं  देश  को,  इक सर्कस की भाँति।
यूँ कर सकल जगत हँसे, फैलाये शक-भ्रान्ति।

कैसे  भी  मतदान   को,  अवशि  जाइये आप।
फिर   परिवर्तन लाइए, अस हों कार्य-कलाप।
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'



Sunday 2 February 2014













धन्यवाद श्रीवास्तव जी,
आप मित्रों का जुड़ाव- शुभकामनाएं- सद्भावनाएं ही हमारा सम्बल है और यकीनन आप कि शुभ कामना अधिवेशन को सफलता कि मंज़िल तक ले जायेगी-ऐसा मेरा विश्वास है.

Saturday 1 February 2014

विनम्र अनुरोध/ आमंत्रण

प्रिय रचनाकार साथियो,
जनवादी लेखक संघ का   8  वां राष्ट्रीय अधिवेशन १४-१५ फरवरी २०१४ को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में आयोजनीय है. दो दिवसीय अधिवेशन के प्रथम दिन १४ को  'हिंदुत्ववादी फासीवाद और प्रगतिशील -जनवादी कवियों-लेखकों की चिंताएं'  विषय पर संगोष्ठी का आयोजन होगा, देश-विदेश में  जाने-माने प्रखर चिंतक-लेखक-आलोचक -विद्वान् उक्त संगोष्ठी को सम्बोधित करेंगे और रात में अखिल भारतीय कवि सम्मलेन -सांस्कृतिक कार्यक्रमों का रंगारंग  स्वस्थ मनोरंजन सूचीबद्ध है.अगले दिन देश भर से, लगभग सभी राज्यों से पधारे प्रतिनिधियों का पारम्परिक सम्मलेन/अधिवेशन होगा, जिसमें सांगठनिक सत्र आख़िरी सत्र होगा और इसमें सिर्फ संगठन के पंजीकृत सदस्य ही भाग  ले सकेंगे।  अन्य सत्र सभी प्रतिभागियों के लिए खुले रहेंगे।
यदि सदस्यता लेना चाहेंगे तो वहीं पर सदस्यता फ़ार्म उपलव्ध करा दिया जायेगा।
जैसा कि संगोष्ठी के विषय से स्पष्ट है -सदस्यों के अतिरिक्त उन  तमाम कवियों-लेखकों का इस अधिवेशन में हम स्वागत करेंगे, जो धर्म निरपेक्ष -प्रगतिशील-जनवादी सोच के हैं और उपरोक्त विषयक संगोष्टी और कवि सम्मलेन - सांस्कृतिक  कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी से आयोजन को जीवंत बनाना चाहते हैं.
कोटा सम्भाग के कवि -लेखक  मित्र,  मुझसे मेरे चलितांक 09214313946  ,ई-मेल kshamaraghunath @gmail.com   अथवा मेरे निवास ,  3 -k -30 , तलवंडी ,कोटा -324005  पर सीधा संपर्क  कर सकते हैं. अन्य राज्यों के रचनाकार अपने सम्बंधित राज्य कमेटियों/ जिला कमेटियों के अध्यक्ष /सचिव से संपर्क कर सकते हैं.
मैं फिलहाल कोटा से बाहर, मनपक्कम, चेन्नई में हूँ और ६ फरवरी १४ को सुबह कोटा पहुँच जाउंगा। उपरोक्त जानकारी आप को राष्ट्रीय महासचिव श्री चंचल चौहान से प्राप्त परिपत्र के अनुसार  दे रहा हूँ।
अतः मन बनाइये और अधिकाधिक संख्या में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कीजिये। जो मित्र फेसबुक पर हैं उन्हें यहाँ से जानकारी के लिए अधिकाधिक साथी अपने जानकार साहित्यकारों के वाल पर इसे शेयर करें और स्वयं के वाल पर भी, ताकि जानकारी के अभाव में कोइ भागीदारी से वंचित नहीं रह  जाय. फेसबुक से बाहर के साथियों से संपर्क करके अपने साथ ले जायं -ऐसा मेरा आप से विनम्र अनुरोध भी है और सादर आमंत्रण भी।
-डा.रघुनाथ मिश्र  'सहज'
अध्यक्ष,  कोटा जिला कमेटी , सदस्य, राजस्थान राज्य कमेटी व्  केंद्रीय परिषद्


Wednesday 29 January 2014

आज का दोहा : सहज का :
               000
अब  मन   को  धो   डालिये,  धुल  जाए  सँसार.
बन जाये फिर यह जगत, बस खुशियों का सार.
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
कोटा-राजस्थान ( चेन्नई से)

Love: इंतज़ार

Love: इंतज़ार: इंतज़ार कि घड़ियाँ गिनते - गिनते , प्रीत कि ओढ़नी ओढे मन दुल्हन सा हो गया है , मिलन कि आस लिए बस दरवाज़े पर टक - टकी लगाये पहरा देते...

Tuesday 28 January 2014



कुछ विचार :


दुनिया भर में फैले असंख्य मित्रों-जन-गण से व्यक्तिशः संपर्क नामुमकिन है और फेस बुक ने हमें इतना करीब ला दिया है कि हम आसानी से, जब भी नेट पर हों, संवाद कायम कर सकते हैं. लेखक हैं तो साहित्य के माध्यम से और यदि लेखक नहीं हैं तो अपने जीवनानुभव,  आपस में status पर लिख क, र ऐसा किया जाना और एक पल मेँ  अपने मित्रों तक न केवल पहुँच जाना, बल्कि समाज-देश-घर-परिवार -कला-धर्म- अध्यात्म आदि क्षेत्रों में भोगे हुए यथार्थ /अनुभव , आपस में बाँट कर,  स्वस्थ मनोरंजन सहित,  समाज के बेहतरीकरण में बहुमूल्य योगदान कर सकते हैं- सीख सकते हैं-सिखा सकते हैं -आदि आदि.
लेकिन ऐसा हम क्यूँ नहीं करते -किसने रोका है और क्या संकोच है-मैं समझ नहीं पाया। कुछ मित्र कभी कुछ पोस्ट नहीं करते और  न  ही  मित्रों की  पोस्ट्स को पढ़ कर उसे like या उस पर comment   करते। ऐसे मित्रों का फेसबुक की दुनिया में क्या काम है और उनके यहाँ होने की आखिर प्रासंगिकता क्या है. मैं चाहूंगा कि आप सभी सुधी मित्र इसी विषय पर अपने विचार साझा करें।
यकीनन मनोरंजन हमारी जिंदगी से अलग कतई नहीं है, लेकिन भोडा-अस्लील-नंगा-अशोभनीय -हमारी स्वस्थ सांस्कृतिक- सामाजिक परम्पराओं के विरुद्ध मनोरंजन -मनोरंजन नहीं है, बल्कि मैं कहूंगा-आत्मघाती और समाज में कोढ़/कैंसर फ़ैलाने जैसा है.
यहाँ आप की पसंद की हर चीज मौजूद है, लेकिन निर्लज्जता और बेहयाई से तो अगर इंसान परहेज नहीं करेगा तो क्या हम जानवरों से यह आशा करेंगे? मैं समझता हूँ- सही जवाब है- बिलकुल नहीं। जो बात अपनी पत्नी से साझा नहीं कर सकते ,जिन चित्रों  को हम अपनी पत्नी-बच्चों- दोस्तों को दिखने में लज्जा महसूस करते हैं, उन बातों और चित्रों को यहाँ ,अपना नाम और प्रोफाइल चित्र बदल कर , सरे आम परोसते हुए यदि हम  एक पल के लिए स्वयं को मनुष्य होने का एहसास कर लें और सभ्य-सुसंस्कृत-सुशिक्षित समाज/ परिवार से होने की अपनी जिम्मेदारी पर विचार कर लें, तो यही फेसबुक हमें निखारने का काम करने लगेगा और हमारा अच्छा मित्र सिद्ध हो सकता है-ऐसा मेरा मानना है -आप क्या सोचते हैं-कृपया मुझसे साझा करेंगे तो मेरे -आप- सभी के लिए यह सही दिशा में बढता हुआ एक प्रभावी क़दम हो सकता है. 

सद्भावी,
डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
09214313946

Monday 27 January 2014

शुभ संध्या दोस्तों (चेन्नई ) से :
अचंभे -अनुभव:
जब हम अपने गृह शहर कसबे या   गावं में होते हैं , तो फेसबुक मित्रों से बड़ी गर्मजोशी- आदर -सदभावना -प्यार से सने - मखमली आवरण  में पैक निमंत्रण,  उनके शहर आने के   लिए मिलते हैं  और बार-बार कुछ मित्र बाकायदा हर दो-चार दिनों में याद दिलाते  रहते हैं और सवाल करते हैं कि , "आप हमारे शहर कब आएंगे-हम  आप के आगमन का  इंतज़ार कर रहे हैं-आप  का हमाँरे घर में आतिथ्य स्वीकरोक्ति का." लेकिन जब उस शहर में पहुंच जाते हैं  तो वही मित्र (चंद अपवादों सहित ) याद् नहीं करते और मोबाइल   के जरिये सम्पर्क किये जाने  पर या तो जवाब नहीं देते  या फिर मिलने के प्रश्न पर निरुत्तर रह जाते हैं.
मैं चेन्नई में २१ जनवरी से हूँ और अभी ४ फरवी तक यहाँ हूँ -यह विदित होने पर भी  चंद  दोस्तों ने सिर्फ हांल -चाल जान लिया और मिलने की  पहल कहीं से भी नहीं।
खैर छोड़िये- मैं खुश हूँ अपनी बेटी के साथ और परम श्रध्देय गुरुदेव के साथ- श्री राम चन्द्र मिशन के चेन्नई स्थित ,,अंतर राष्ट्रीय मुख्यालय 'बाबूजी मेमोरिल आश्रम 'में और किसी से भी मुझे कोई गिला  नहीं है। लखनऊ- बस्ती-गोरखपुर -शाहजहांपुर में मित्रों ने बहुत प्यार -सम्मान दिया और मित्रता के सही मायने भी  उनहोंने  पुष्ट किये। मेरे स्वागत में अनेक संस्थओं ने वहाँ  संगोष्ठियां आदि  भी  आयोजित कीं।  सभी जगहों में मित्रों ने अपने घरों में पारिवारिक वातावरण दिया और  घर से कहीं ज्यादा अच्छे घर का एहसास करवाया।  मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा।  चेन्नई के भी दोस्तों का , जिन्होंने मो-वार्ता से कुशल-क्षेम जाना , आभारी हूँ व रहूंगा।
 यह शिकायत करने के लिए नहीं, बल्कि अपने  भोगे हुए अनुभव/ यथार्थ , इस आभासी फेसबुक दुनियां के -आप के साथ साझा  करने के लिए है, ताकि आप जब कहीं  जाएँ तो किसी से कोई  अपेक्षा  न करें और यदि कोइ मो-वार्ता भी करता हो  तो उसे धन्यवद दें और खुश रहें।  ये घटनाएं हमें सिखाती हैं ,अतः इनका स्वागत करें।
सद्भावी/दोस्त/स्नेहाकांक्षी /सादर/सस्नेह आप का,
डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
चेन्नई (तमिलनाडु)

शुभ सांध्य दोस्तों 

Friday 24 January 2014

परिचर्चा : इस बार का विषय : सृजनधर्मिता के समक्ष चुनौतियां 

संयोजक : डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

प्रिय रचनाकार वन्धुओ,
यह स्थाई स्तम्भ शुरू करने के लिए प्रधान संपादक ,आदरणीया  शीला डोंगरे जी व् मेरे द्वारा फेस बुक, जो आज के दौर में सर्वाधिक सशक्त और अविलम्ब सम्प्रेषण का बेमिसाल माध्यम है, पर आप से सारगर्भित -संछिप्त ( अधिकतम ३० पंक्तियों में)- प्रतिनिधि और मात्र विषय पर ही केंद्रित ( अनावश्यक  भूमिका  और विषयांतर से परहेज सहित) विचार मुझे मेरे ई-मेल पते पर प्रेषित कर, उक्त परिचर्चा  में , अपनी जीवंत भागीदारी से,  साहित्य जगत-सवयम व पाठकों को लाभान्वित करने का सादर आग्रह किया गया था.मैं आभारी हूँ 'सार्थक नव्या' और प्रधान सम्पादिका शीला डोंगरे जी का, जिन्होंने मुझे यह महत्वपूर्ण दायित्व  सौंपा है.
इसे पूरा करने में सर्वग्राह्य - सर्वमान्य मानदंडों  की कसौटी  पर खरा उतरने के सार्थक प्रयासों/  मुश्तैदी में कोई कमी नहीं आने -देने का मेरा आप व पत्रिका से वायदा है और आप का पूर्ण सहयोग मुझे इस दायित्व निर्वहन में मिलेगा- ऐसा मेरा आत्मविश्वास है - अहम्  नहीं।
विषय पर विमर्श के लिए अभी तक सिर्फ रेखा जोशी  जी का मुझे मेल १९ को मिला है, मैं उनका अपनी व पत्रिका परिवार कि और से आभारी हूँ.10 -12  चुनिंदा वरिष्ट साहित्यकारों से उनके इन बॉक्स में लिख कर निवेदन किया था- सहयोग के लिए, लेकिन कुछ ने असमर्थता बताई- कुछ ने विषय पर पकड़ की  कमी बताई और कुछ लोगों से कोई जवाब नहीं मिला। आप को परिचर्चा में भाग लेने के लिए निर्देश हेतु तो नहीं वरन  'विषय प्रवर्तन' / विषय पर विमर्श का एक वातावरण बनाने हेतु अपने उदगार निम्नानुसार दे रहा हूँ:

विषय प्रवर्तन 

आदिकाल से ही साहित्य रचा जा रहा है.प्रागैतिहासिक/ वैदिक /पौराणिक /रीतिकालीन / अन्यान्य कालचक्रों की याद में जायँ और सृजनधर्मिता के इतिहास पर दृष्टि डालें तो हम विपुल साहित्य के अतुल्य भण्डार पर स्वयं को खड़ा पाएंगे।
गीता -रामायण-महाभारत-उपनिषदों-वेदों-पुराणों-पृथ्वीराज रासो-खुमानरासो-- कबीर-मीरा-सूर -तुलसी-कालिदास-मीरतकी - मिर्ज़ा ग़ालिब-अमीर खुसरो -रहीम-जायसी-कालिदास-बाल्मीकि-महापंडित राहुल सांकृत्यायन-लैब टालस्टाय-निकोलाई अस्ट्रोवस्की-बेंजामिन मोलाइस-मुक्तिबोध-धूमिल - महादेवी वर्मा-प्रेम चंद -आचार्य रामचंद्र शुक्ल-जयशंकर प्रसाद-सुमित्रानंदन पंत- डा. रामविलास शर्मा ( सूची के वरिष्ठताक्रम पर ध्यान न दें- सिर्फ उदाहरण के लिए आगे-पीछे, जो भी याद आये- दे दिया है) आदित्यादि के समक्ष भी चुनौतियां रही हैं और आज से कहीं बहुत ज्यादा। हर युग में कलम ने चुनौतियाँ देखीं-भोगीं-झेलीं और रचनाकार कहीं टूटे-कहीं गति धीमी हुई-कहीं वही उनकी ताकत बनीं और बड़े-बड़े कीर्तिमान बनाये।
लालटेन की  चिमनी पर छाये कार्बन को यदि साफ़ नहीं करें, तो उसके अंदर प्रज्वलित लौ, चिमनी के संकुचित- छोटे दायरे में घुट- सिमट कर रह जायेगी और निरंतर जल कर भी हमें बाहर  प्रकाश नहीं दे पायेगी।
बकौल युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद , "विश्वविद्यालय-पाठशालाएं-वाचनालय-पुस्तकें-ज्ञान की  दीप्ति सब हमारे अंदर विद्यमान हैं -आवश्यकता है उन्हें बाहर निकलने की और यह हमें स्वयं ही करना होगा। "
लेखक स्वयं ही अपनी सृजनधर्मिता के मार्ग में अनेक बार, अपनी नकारात्मक सोच  और प्रदूषित मानसिकता के कारण,   अपने विरुद्ध - चुनौती के रूप में खड़ा पाता  है.इससे बड़ी चुनौती सम्भवतः नहीं होगी। स्वयं की  प्रदूषित मानसिकता के विरुदध स्वयं को लड़ना होगा।सोचको सकारात्मक दिशा में मोड़ना होगा।यथार्थ का सामना करना होगा। अच्छा लिखने/बोलने के लिए अच्छा पढना/ सुनना होगा। अनवरत लिखने-बोलने के अभ्यास में आना होगा। मस्तिष्क को नियमित (रेगुलेट) करना  होगा।  बुद्धि द्वारा मस्तिस्क को सकारात्मक मार्ग पर  चलने का निर्देश/ सुझाव देना होगा। 
लेखक के सामने चुनौतियाँ ही उसे आगे बढ़ने का कार्य करती है, उसे तोड़ती भी हैं और उससे नए-नए कीर्तिमान  भी  बनवाती  हैं। . लेखक को अपना सरोकार-प्रतिबद्धता-लक्ष्य निर्धारित करना होगा। 
प्रकाशन की  समस्या-प्रकाशन में धन की समस्या-प्रकाशकों द्वारा शोषण की  समस्या- गरीब लेखकों के समक्ष छपने और वितरण की  समस्या - श्रेष्ठ साहित्य नहीं होने पर पाठकों के अकाल की समस्या -दूसरों की  रचना खुद के नाम कर लेने की समस्या-राज्यों की साहित्य अकादमियों द्वारा श्रेष्ट साहित्यकारों के बजाय चाटुकारों के संरक्षण-संवर्धन -प्रोत्साहन की  समस्या - साहित्यकार द्वारा पुरस्कारों की होड़ में, पैसा देकर घटिया साहित्यसृजन की  ओर प्रेरित होना- ज्यादा लिखने के चक्कर में घटिया- निम्नस्तरीय लेखन की प्रवृत्ति आदि अनेक चुनौतियां निःसंदेह हमारे सामने होती हैं। . लेकिन इन्हीं के बीच -. इनका सामना करते हुए और अविचल-अविकल-निरंतर लेखन हमें कालजयी बनाता है। उपरोक्त लेखकों/विद्वानों/महापुरुषों/ के नाम हमें प्रेरित करते है। 
अन्यान्य समस्याएं हमारे सामने होती हैं, लेकिन उनसे घबड़ाकर पलायन कर जाना-टूट जाना- भटक जाना निदान नहीं। चुनौतियों को स्वीकार करना होगा। अपने रचना कर्म में निखार लाना होगा और तब स्तरीय लेखक के समक्ष ये टिकेंगी नहीं और बहुत सारे रास्ते खुलेंगे - रोशनी मिलेगी-हम आगे बढ़ेंगे- अपनी श्रेष्ठ सृजनधर्मिता और जुझारूपन के कारण। 
उपरोक्त उदगार को मेरा आलेख /भाषण/प्रवचन नहीं मानें . मैं एक अदना सा लेखक हूँ।  अपने दायित्वबोध के मध्यनज़र कुछ टिप्स देने की  कोशिश भर है, जिससे आप को इसमें भागीदारी का एक वातावरण मिल सके और अप अपनी भागीदारी इस स्तम्भ के लिए सुनिश्चित करेँ। 
हम आप के विचारों का स्वागत करेंगे  और प्रकाशित कर गर्वान्वित महसूस करेंगे। 
( इस बार हम यहाँ डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' के,  इस उदगार प्रकाशन के साथ ही,  इसी विषय पर आप की  जीवंत  भागीदारी का अगले अंक के लिए आग्रह करते हैं।  -शीला डोंगरे, प्रधान सम्पादक, सार्थक नव्या )
शुभेक्षु,
डा.रघुनाथ मिश्र सहज'
संयोजक ( परिचर्चा)
'सार्थक नव्या' 
                        





Tuesday 14 January 2014

मकर संक्रांति पर्व पर कुछ उदगार- कुछ दोहे 'सहज' के

  

आज मकर संक्रांती के पावन पर्व पर, मैं अपने सभी दोस्तों को ,उनके दीर्घ जीवन- उत्तम स्वास्थ्य- जीवन में अब तक आई सभी कदवाहटो से छुटकारा पाने-जीवन में नये- नये-अनुकरणीय कीर्तिमान बनाने -आपसी भाईचारा बढाने-प्रेम पाना-देना सीखने- सिखाने की मंगल कामना करता हूँ. 
लीजिये इस अवसर पर मंगल कामना स्वरूप अभी अभी हृदय से निकले दोहों के इस उद्गार को उसी रूप में आप को भेंट कर राहा हूँ और आशा करता हूँ की ये आप के जीवन में सकारात्मक बदलाव की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे:
दोहे सहज के:
000
यह दुनिया इक ज़ाल है, इसे काटना सीख.
बिन काटे इस ज़ाल को, मंज़िल सके न दीख.
कर अछा तब भी न अगर, मिले सुखद परिणाम.

देगी पर यह ही डगर, समुचित आदर -नाम.
नफरत-बदला-द्वेष सब, मिटने के सामान.
दूरी इनसे ही भली, युगपुरुषों का ज्ञान.
क़ैदी ही बस जानता,है बाहर का द्वार.
दे निकाल नफरत-ज़हर, कर ले जग से प्यार.
मानव देह हमें मिली, कुछ करने को खास.
यदि आलस में फंस गए, बने रहेंगे दास.
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Saturday 11 January 2014

अलग -अलग ग़ज़लों के कुछ चुनिंदा शेर



आप ने  अपनी  कही,  सबने  सुनी,
अब समय है दूसरों को दीजिये कहने.
                  - डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

आंधियाँ पुरजोर हों या मौसमों की मार हो,
यूं लगे माँ  स्वयं ही, आनंद का संसार हो.
                       - डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
सोच जरा हट के.
खामखाँ  न भटके.
- डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' 
प्यार का  है चलन  मानव योनि  में,
नफरतों के गढ़ -मठों को दीजिये ढहने.
    - डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
करनी कर अब यूं,
'सहज' नाम चमके.
- डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
जो भटकाये मार्ग से,
तुरत  उसे  दुतकार.
- डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
 
सपने ऐसे देखिये,
'सहज' मिले आकार. 
- डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Tuesday 7 January 2014

पुस्तक समीक्षा सोच ले तू किधर जा रहा है समीक्षक-डा0 अशोक ‘गुलशन’

पुस्तक समीक्षा
सोच ले तू किधर जा रहा है
समीक्षक-डा0 अशोक ‘गुलशन’
‘सोच ले तू किधर जा रहा है’ जनकवि रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ की हिन्दी-उर्दू ग़ज़लों का संग्रह है जिसे जनवादी लेखक संघ कोटा , राजस्थान द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक की भूमिका कोटा के विद्वान् कवि एवं साहित्यकार श्री गोपाल कृष्ण भट्ट ‘‘आकुल’’ ने लिखी है। भूमिका में श्री मिश्र कीग़ज़लों को दस्तावेज माना गया है । दस्तावेज इसलिए कि श्री मिश्र स्वयं एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं तथा अनेक संस्थाओं से संबद्ध हैं और प्रायः अधिकाॅश आयोजनों में वह अध्यक्ष या मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किये जाते हैं। हालाॅकि सहज होते हुए भी वह विनम्रता का साथ नहीं छोड़ते और अपनी सादगी से लोगों को अपना मुरीद बना लेते हैं । अपने इस मोहक व्यक्तित्व-व्यवहार का प्रभाव वह अपनी रचनाओं में भी बनाये रखने में समर्थ हैं।
उनकी 50 ग़ज़लों के इस खूबसूरत गुलदस्ते में गरीबी, इन्सानियत, भूख, दर्द, खुशी, ग़म, देश, गाॅव, आजादी, जीवन, प्यार, हॅसी आदि के फूलों को सजाकर उन्होंने संग्रह को रोचक और मोहक बना दिया है। श्री मिश्र की रचनायें संदेशप्रद होती हैं और उनमें निष्क्रिय को सक्रिय बनाने का आहवान होता है जैसे जि़न्दगी का अर्थ समझाते हुए उनका यह मत्ला- कौन कहता है ? मजा, जोखि़म से डर जाने में है,
जिन्दगी का अर्थ ही, तूफाॅ से टकराने में है।--पृ0- 18
ग़ज़ल में मुहावरे का प्रयोग ग़ज़ल के मेयार को और उॅचा उठा देता है। इसका एक प्रयोग देखें-जोड़कर तिनके से तिनका, घर बनाये थे कभी,
आज वो तिनके बिखरकर, तीन-तेरह हो लिये।-पृ0-30
और आज की वर्तमान दुव्र्यवस्था को चुनौती देता उनका एक शेर भी काबिले-तारीफ है-मत करो कोशिश सुनाने की ,वे बहरे हो गये।
छीनकर लेने पड़ेंगे हक, चलो मिलकर चलें।-पृ0--31
आजाद देश की जो तस्वीर हमने देखने की सोची थी ,वह तस्वीर आज कुछ धुॅधली स ीनज़र आ रही है। यह सोचकर श्री मिश्र सहज भाव से अपना दर्द बयाॅ करने में नहीं चूकते। आखिर उन्हें एक शेर के माध्यम से कहना ही पड़ता है-
हमने सॅजोये थे कभी, खुशहालियों के ख़्वाब,
आॅखों में बाढ़ आज भी, अश्कों की कम नहीं।-पृ0--34
वक़्त किसी के वश में नहीं रहता। वह किसी अवसर की प्रतीक्षा भी नहीं करता। वह अपना काम करता रहता है इन्सान चाहे जितना सोचे ,इन्सान का सोचा कुछ नहीं होता । इसी बात को श्री सहज बहुत ही सहज भाव से अपने शेर के माध्यम से कुछ यूॅ कहते हैं-
वक़्त को चुनौती दे, बनते रहो अमर कितने,
जीवन को निवाले सा, वक्त ही निगलता है।-पृ0---41
इसी प्रकार एक से बढ़कर एक शेर कहकर श्री मिश्र ने अपने दायित्व को ’’सोच ले तू किधर जा रहा है’’में निभाने का पूरा-पूरा और सार्थक प्रयास किया है जिसमें उनकी तरफ से कोई कमी नहीं दिखती बस जरूरत है उनके कहे को अमल में लाने की जिसका दायित्व निभाना हम सबकी आवश्यक जिम्मेदारी है। अनेक उर्दू शब्दों के प्रयोग से इस संग्रह में उन्होंने अच्छे-अच्छे शेर कहे हैं और पाठकों की सुविधा की दृष्टि से अन्त में उन्होंने उर्दू शब्दों का हिन्दी रूपान्तर भी प्रस्तुत किया है जो उनका उर्दू भाषा के प्रति हृदय से लगाव होना सिद्ध करना हे।
सहज और सरल शब्दों का चयन कर उन शब्दों के माध्यम से पाठकों तक अपनी बात पहुॅचाने की कला के धनी श्री मिश्र से भविष्य में और भी अपेक्षाएॅ हैं जिन्हें पूरा करने का दायित्व निभाते हुए वह आज भी सक्रिय हैं। ईश्वर उनकी इस सक्रियता को बनाये रखने हेतु उन्हें दीर्घायु प्रदान करें। इन्हीं शुभ कामनाओं के साथ उत्त्म प्रस्तुति हेतु बधाई।
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कृति- सोच ले तू किधर जा रहा है डा0 अशोक ‘गुलशन’
ग़ज़लकार-रघुनाथ मिश्र
प्रकाशक-जनवादी लेखक संघ
कोटा, राजस्थान
संस्करण-प्रथम, 2008
पृष्ठ-80 ,मूल्य-50 रू0 

DR.RAGHUNATH MISHRA 'SAHAJ' KI GHAZAL.-MUKTAK-SHER

'सहज' की अभी कही ताज़ा ग़ज़ल:
           000
घिर गया सूरज, कुहासे में, नज़र आता  नहीं।
शून्य पारे में, असल का ताप, अब आता नहीं। 
लोग  करते हैं  प्रतीक्षा,  कैंसर में  मौत  की,
मांगते  हैं  मरण, जीना  है  उन्हें, भाता नहीं।
दूध की किल्लत, बड़ों में, चाहे जितनी हो भले,
दुधमुँहा  भूखा  मगर, है  रोटियाँ, खाता  नहीं।
हर कोई कितना भी चाहे, हो उसे हासिल  खुशी,
उस  तरफ बैठे-बिठाये, मार्ग  पर जाता  नहीं।
"जिंदगी  है भूल  का परिणाम", बेमानी  समझ,
कम से कम मानव 'सहज' ही, जिंदगी पाता नहीं।
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' 

'सहज' के अभी सृजित  दो मुक्तक:
         000
           (1)
बहुत दिनों में आज सवेरे, दिनकर निकला।
जन-गण-मन को लगा,अचानक, कष्ट गला।
खुश रह लें हर मौसम में, ये समझ  भली,
क्यूं ना मनाएं उत्सव, जब पर्वत  पिघला।
           000
           (2)
अब चिड़ियों का शोर सुनो।
क्या कहती है  भोर  सुनो।
पड़े  -पड़े  जड़ हो जाओगे,
कहती जीवन  -डोर सुनो।
 -डा.रघुनाथ मिश्र 'सह्ज'

एक शेर 'सहज' का:
        000
चलते-चलते सीख लेंगे, है मुझे उम्मीद यह,
'सहज' ही पा जायेंगे सहयात्री जीने का ढंग।
         -डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'











Friday 3 January 2014

डा0 रघुनाथ मिश्र के नये ग़ज़ल संग्रह 'प्राण पखेरू' का लोकार्पण 23 मार्च को साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक कला संगम अकादमी परियावाँ में

डा0 रघुनाथ मिश्र 'सहज'
कोटा। कोटा के प्रख्‍यात वरिष्‍ठ जनवादी कवि डा0 रघुनाथ मिश्र 'स‍हज' के नये ग़ज़ल संग्रह'प्राण पखेरू' का लोकार्पण साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक कलासंगम अकादमी, परियावाँ, जिला प्रतापगढ़ में 22-23 मार्च 2014 को अकादमी के भव्‍य समारोह में होना निश्चित हुआ है। अकादमी के संस्‍थापक एवं प्रबंधक डा0 वृन्‍दावन त्रिपाठी 'रत्‍नेश' ने दूरभाष पर डा0 मिश्र को अकादमी के समारोह में पुस्‍तक के की सहमति प्रदान कर दी है।  
इस कार्यक्रम में डा0 मिश्र के साथ कोटा के साहित्‍यकार डा0 गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' भी जायेंगे। प्रतिवर्ष होने वाले अकादमी के समारोह में भारत के अनेकों प्रान्‍तों के साहित्‍यकार, विद्वानों को आमंत्रित एवं सम्‍मानित किया जाता है। पूर्व में डा0 मिश्र व डा0 'आकुल' को अकादमी द्वारा सम्‍मानित किया जा चुका है। अकादमी में अन्‍य साहित्यिक संस्‍थायें भी सम्मिलित हो कर अपने कार्यक्रम करती हैं। जिनमें कोलकाता की भारतीय वाड्.मय पीठ, तारिका विचार मंच आदि कई संस्‍थायें भी साहित्‍यकारों को सम्‍मानित करती है। डा0  रघुनाथ मिश्र  'सहज' का यह दूसरा ग़ज़ल संग्रह है। पहला संग्रह 'सोच ले तू किधर जा रहा है' 2008 में जनवादी लेखक संघ, कोटा चेप्‍टर के 2008 में मनाये गये सृजन वर्ष में प्रकाशित हुआ था। डा0 मिश्र को इस पुस्‍तक पर ढेरों सम्‍मान व पुरस्‍कार प्राप्‍त हुए थे। डा0 'आकुल' ने डा0 'सहज' को बधाई दी। अखिल भारतीय स्‍तर पर अपनी जल्‍दी ही पहचान बनाने वाले डा0 मिश्र गीत, ग़ज़ल, हाइकु, दोहा ग़ज़ल, कविताएँ आदि के जाने माने हस्‍ताक्षर हैं। आपकी पुस्‍तक 'प्राण पखेरू' को साइड बार में क्लिक कर पूरा पढ़ें। 

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