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Monday 21 April 2014

'सहज' के चुनावी   दोहे :

मीठी -  मीठी   गोलियां,   देकर   रहे    रिझाय।
आज  नहीं  तो फिर नहीं, मसला लियो बनाय।

यह  जनता  भोली  बड़ी, लो  इसको फुसलाय।
जम   करके   वादे   करो,  वोट  लेउ  डलवाय।

आश्वासन   की   आँधियाँ,  उड़ा  रहीं   ईमान।
देशभक्त   बन   पनप  रहे, आतंकी- बेईमान।

पहले जमकर सोचि  लै,फिर  कीजै  मतदान।
इधर-उधर की छोड़ि  कै, केवल दिल की मान।

पेशेवर    नेता    ठगे,   बन   कर   भाई - पूत।
नोट  -  वोट  -  व्यापर की,  जड़ें हुईं मजबूत।

वादे  में  घ -जल -सड़क, भोजन-पानी-खेत।
वोटर  ज्यूँ का   त्यूं  रहा , गइ  नेता की चेत।

दिखा  रहे  हैं  देश  को,  इक सर्कस की भाँति।
यूँ कर सकल जगत हँसे, फैलाये शक-भ्रान्ति।

कैसे  भी  मतदान   को,  अवशि  जाइये आप।
फिर   परिवर्तन लाइए, अस हों कार्य-कलाप।
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'