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Tuesday, 14 January 2014

मकर संक्रांति पर्व पर कुछ उदगार- कुछ दोहे 'सहज' के

  

आज मकर संक्रांती के पावन पर्व पर, मैं अपने सभी दोस्तों को ,उनके दीर्घ जीवन- उत्तम स्वास्थ्य- जीवन में अब तक आई सभी कदवाहटो से छुटकारा पाने-जीवन में नये- नये-अनुकरणीय कीर्तिमान बनाने -आपसी भाईचारा बढाने-प्रेम पाना-देना सीखने- सिखाने की मंगल कामना करता हूँ. 
लीजिये इस अवसर पर मंगल कामना स्वरूप अभी अभी हृदय से निकले दोहों के इस उद्गार को उसी रूप में आप को भेंट कर राहा हूँ और आशा करता हूँ की ये आप के जीवन में सकारात्मक बदलाव की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे:
दोहे सहज के:
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यह दुनिया इक ज़ाल है, इसे काटना सीख.
बिन काटे इस ज़ाल को, मंज़िल सके न दीख.
कर अछा तब भी न अगर, मिले सुखद परिणाम.

देगी पर यह ही डगर, समुचित आदर -नाम.
नफरत-बदला-द्वेष सब, मिटने के सामान.
दूरी इनसे ही भली, युगपुरुषों का ज्ञान.
क़ैदी ही बस जानता,है बाहर का द्वार.
दे निकाल नफरत-ज़हर, कर ले जग से प्यार.
मानव देह हमें मिली, कुछ करने को खास.
यदि आलस में फंस गए, बने रहेंगे दास.
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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