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Thursday 23 October 2014

एक ताज़ा ग़ज़ल-दीपमालिका के पावन पर्व पर आप सभी को सादर भेंट .

धनतेरस और दीवाली की, आप व आपके स्वजनों को, हार्दिक बधाई -इस संदेश के साथ:
मेरी ताज़ा ग़ज़ल:
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अंधियारे को दूर भगाने, का अवसर है.
विद्वेषों के महल, ढहाने का अवसर है.
हो दुश्मन हावी, हमको जकड़े फिर से,
देश-प्रेम का अलख,जगाने का अवसर है.
आपस में हम रहें सदा, गुलदस्ते सा बन,
ऐसा इक माहौल, बनाने का अवसर है.
हृदयों का इक बाग़ लगे, अब इस जग में,
अब यह अनहद गीत, सुनाने का अवसर है.
निसचय कर लेखनी, सृजन में हो संदेश,
हृदयों को इक संग, मिलाने का अवसर है.
पड़े हुए हैं आलस में, जो बढ़हवाश हो कर,
अभी नींद से उन्हें, जगाने का अवसर है.
नेता जितने भूल गये, आश्वाशन-वादे-करतब को,
अभी वोट से, याद दिलाने का अवसर है.
किसी परिन्दे के पर, काट दिये जिसने भी अब,
उसे पकड़ अब, सबक सिखाने का अवसर है.
बगिया को सहरा, करनेवाले ज़ालिम को,
अब मिल-जुल कर, धूल चटाने का अवसर है.
खुसहाली में, ज़हर घोल खुश होने का,
अबसे चलन, मिटाने का अवसर है..
आती थी बहार तब, जिन सहराओं में ,
'सहज' वहीँ फिर,फूल खिलाने का अवसर है.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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