डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज' के मुक्तक :
(१)
बूजुर्ग छाया देते हैं पेड़ की तरह
विचलन रोकते हैं वे मेड की तरह
मिल गया जिसे भी आशीष उनका
मस्त रहते हैं वे अखिलेश की तरह
(२)
हो आप का जीवन भरा, खुशियों से हर इक पल
हंसते व झूमते हुए जाए उमर निकल
नफरत है ज़हर ज़िन्दगी में मान लीजिये
बस प्यार ही में, प्यार से ही, है जगत सकल
(३)
जीना हजार साल किसी काम का नहीं
करोणो का हो सामान किसी कम का नहीं
है प्यार जिसके पास वो बड़ा अमीर है
साधाव बिन पद- नाम किसी काम का नहीं
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'
(१)
बूजुर्ग छाया देते हैं पेड़ की तरह
विचलन रोकते हैं वे मेड की तरह
मिल गया जिसे भी आशीष उनका
मस्त रहते हैं वे अखिलेश की तरह
(२)
हो आप का जीवन भरा, खुशियों से हर इक पल
हंसते व झूमते हुए जाए उमर निकल
नफरत है ज़हर ज़िन्दगी में मान लीजिये
बस प्यार ही में, प्यार से ही, है जगत सकल
(३)
जीना हजार साल किसी काम का नहीं
करोणो का हो सामान किसी कम का नहीं
है प्यार जिसके पास वो बड़ा अमीर है
साधाव बिन पद- नाम किसी काम का नहीं
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'
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