गीत्
है
गुलाब से प्यार जिसे, काँटोँ से न वो डरता है.
चुनौतियोँ
से बिन झिझके,स्व्कार उन्हेँ करता है.
जीवन क हर रंग, उसे भा जाता है.
दुख- सुख दोनोँ मेण जीना आ जाता है.
मंजिल मिलने का रहस्य पा जाता है.
जीने लायक भर वो खाता- पेता है.
जीवन
लक्श्यहीन हो तो हर पल जीता-मरता है.
है
गुलाब से प्यार जिसे, काँटोँ से न कवो डरता है.
कठिन् क्शणोँ का, जो करता, दिल से स्वागत्.
आघातोँ
से होता नहीँ , कभी
आहत् .
है
अपने ही हाथ
बनाना, हर हालत.
कर्तव्यो
से ही पूरी
होती चाहत्.
बात पते
की है, जैसा जो
करे वही भरता है.
है
गुलाब से प्यार जिसे, काँटोँ से न वो डरता है.
परहित
जिसने भी ,जीवन का
लक्श्य बनाया.
उंच-नेच-पाखनँड- बःऎड क़ॆ क़िळॆ ढ्हाया.
माना उसने
कभी किसी को नहीँ पराया.
संत-
मसीहा- पैगम्बर -ईश्वर कहलाया.
सद्कर्मोँ-
सद्भावोँ से, हर घाव सहज
भरता है.
है
गुलाब से प्यार जिसे, कांटोँ से न वो डरता
है.
तुलसी-सूर-रहीम-निराला और मीरा.
ओढ फकीरी थम्हा गये जग को हीरा.
मलिक मोहम्मद- कलिदास-टैगोर- कबीरा.
पिला गये ग्यानाम्रित जग को,पीर हरे हर पीरा.
है
केवल मानव ही, जैसा चाहे बन सक्ता है.
है
गुलाब से प्यार जिसे, कांटोँ से न वो डरता है.
00000
-डा. रघुनाथ मिश्र्
मुक्तक्
लूट्-पाट-
हत्यायेँ, देश तरक्की पर.
आहत बहनेँ- मायेँ, देश तरक्की पर.
आज़ादी का अर्थ, सार्थक करने को,
सच
मुच कर दिखलायेँ, देश तरक्की पर.
00000
डा.
रघुनाथ मिश्र्
दोहे
भेद-भाव
के रँग रँगी, क्या होगी तश्वीर.
है
मसला हल्का नहीन, बहुत बडा गम्भीर.
कर्महीन्
को हक़ नहीँ, कहलाये हक़दार.
समाधान
जिसमेँ नहीँ, वो कैसी सरकार.
सूद्खोर
के पास है, गिरवी हर इक सांस.
'जिन्दा
हूँ' अब भी कहो, हो कैसे विश्वास.
लघु-मध्यम
या उच्च के गया कोइ ना साथ.
अंत
समय जब शीश पर,खाली-खाली हाथ्.
जन्म-
मरण दोनोँ समय,है
नँगा इंसान.
धन-दौलत
और पदक पर,फिर कैसा अभिमान.
पल-पल
बढता जा रहा, बिना हिचक अपराध.
यह कैसा
जनतंत्र है,घुटी- घुटी हर् साँस.
भूख-प्यास
से त्रस्त जो, कहाँ ग्यान और ध्यान.
भोजन-
पानी की
जगह, बाँट् रहे विग्यान.
कर्ज़दार से
पूछिये, क्या है घर का
हाल्.
इक-इक पल उसको लगे, जैसे सौ-सौ साल्.
अब
न फँसेँगे जाल मेँ, समझ गये हैँ लोग.
00000
डा.
रघुनाथ मिश्र्
nice
ReplyDeleteTHANKS FOR ENCOURAGEMENT SUMAN SAHAB.
DeleteDR. RAGHUNATH MISHR
१. सर्वप्रथम ब्लॉग जगत में पदार्पण के लिए मैं आपका स्वागत करता हूँ।
ReplyDelete२. बहुत ही सुंदर भाव के साथ लिखे गए मुक्तक, गजल एवं दोहे अच्छे हैं। निःसंदेह अपने वरिष्ठक्रम को बनाए रखकर और अनुभव के आधार पर आप साहित्य को प्राणवायु देने का कार्य कर रहे हैं। मेरी ओर से हार्दिक बधाई।
हार्दिक आभार.
Deleteडा. रघुनाथ मिश्र्
वाह...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचनाएँ...
सभी विधाओं में महारथ हासिल है आपको...
सादर
अनु
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार अनु जी.
Deleteस्नेहाधीन,
डा. रघुनाथ मिश्र्
धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी.आप की सकारात्मक तिप्पडी सकारत्मक दिशा मेँ आगे बढने की प्रेरणा देती है.
ReplyDeleteशुभेक्षु,
डा. रघुनाथ मिश्र्
THANKS FOR ENCOURAGEMENT SIR.
ReplyDeleteDR. RAGHUNATH MISHR
बहुत बढ़िया .... देश तरक्की पर ॥सटीक मुक्तक ....
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
KOSHISH KARUNGA SANGEETA JI. DHANYAVAAD COMMENTS KE LIYE. ABHI BLOG JAGAT MEIN NAYAA HUN. TAKNEEKEE JANKAARI KE ABHAAV MEIN BHI DEVELOP NAHIN HO PA RAHA HAI. GRADUALLY HOGAA. AAP MITRON KAA SAHAYOG VA AASHEERVAAD AISE HI MILTAA RAHEGAA TO STREAMLINE MEIN CHEJON KAA AANA ASAAN HO JAAYEGAA.
ReplyDeletePUNAH COMMENT VA ENCOURAGEMENT WITH SUGGESTIONS KE LIYE HARDIK AABHAR- IS ASHA VA VISHWAASH KE SAATH KI ISI TARAH AAP KAA MARGDARSHAN MILATA RAHEGAA AAGE BHI.
DR. RAGHUNAATH MISHRA.