डा. रघुनाथ मिश्र की दो गज़लें
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देखा कुदरत का ऐसा कहर ना कभी.
देखा गुस्से का ऐसा असर ना कभी.
यूँ तो आना व जाना चला ही करे .
देखा होना यूँ अंतिम सफ़र ना कभी .
मार डाले न छोड़े किसी भी तरह.
देखी लहरों में ऐसी लहर ना कभी .
लेखनी लिख ग़ज़ल-गीत ऐसे सदा .
हों मुखर भाव टूटे बहर ना कभी .
कुछ करें अब असरदार यारो उठो .
बद्विचारों का लिले ज़हर ना कभी .
हो 'सहज' ज़िन्दगी जी लें जीभर सभी .
तू बुराई पे हरगिज़ ठहर ना कभी .
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सुनता नहीं कोई है बात क्या कीजै .
दुश्मन लगा रहा है घात क्या कीजै .
किसलय के पास आ रहा बसंत यकीनन .
डाली पे पक चुके जो पात क्या कीजै .
चंद मर गए अजीर्ण से है समाचार में .
गावों में भूख पर उत्पात क्या कीजै .
चुनाव आ गए हैं सर पे इस लिए शायद .
उठा लिया है अब आपात क्या कीजै .
कुदरत से थी तनातनी सदियों से चल रही .
यकबयक ये बज्रपात क्या कीजै .
वो था अतीत लौट कर न आयेगा कभी .
आज के हैं हाथ में हालात क्या कीजै .
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डा . रघुनाथ मिश्र 'सहज'
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देखा कुदरत का ऐसा कहर ना कभी.
देखा गुस्से का ऐसा असर ना कभी.
यूँ तो आना व जाना चला ही करे .
देखा होना यूँ अंतिम सफ़र ना कभी .
मार डाले न छोड़े किसी भी तरह.
देखी लहरों में ऐसी लहर ना कभी .
लेखनी लिख ग़ज़ल-गीत ऐसे सदा .
हों मुखर भाव टूटे बहर ना कभी .
कुछ करें अब असरदार यारो उठो .
बद्विचारों का लिले ज़हर ना कभी .
हो 'सहज' ज़िन्दगी जी लें जीभर सभी .
तू बुराई पे हरगिज़ ठहर ना कभी .
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सुनता नहीं कोई है बात क्या कीजै .
दुश्मन लगा रहा है घात क्या कीजै .
किसलय के पास आ रहा बसंत यकीनन .
डाली पे पक चुके जो पात क्या कीजै .
चंद मर गए अजीर्ण से है समाचार में .
गावों में भूख पर उत्पात क्या कीजै .
चुनाव आ गए हैं सर पे इस लिए शायद .
उठा लिया है अब आपात क्या कीजै .
कुदरत से थी तनातनी सदियों से चल रही .
यकबयक ये बज्रपात क्या कीजै .
वो था अतीत लौट कर न आयेगा कभी .
आज के हैं हाथ में हालात क्या कीजै .
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डा . रघुनाथ मिश्र 'सहज'
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