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Sunday, 19 May 2013

एक बिल्कुल ताज़ा गज़ल्

गज़ल
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क्या बनना है अगर आ गया, फिर चिंता की बात नहीँ.
परमारथ का भाव भा गया, फिर चिंता की बात नहीँ.

सोया पडा ज़माना सारा, कौन जगाये- प्रश्न ज्वलंत,
प्रश्न अगर सर्वत्र छा गया, फिर चिंता की बात नहीँ.

बनने की खातिर इक्ज़ुट हैँ, आपस मेँ सब ह्रिदय अगर,
तब बिगाड आंखेँ दिखा गया, फिर चिंता की बात नहीँ.

सुपरिणाम पाने के लायक, कर्म तहे दिल से कर डाला,
प्रतिफल फिर गहरा सता गया, फिर चिंता की बात नहीँ.

गीत खुशी के मचल रहे हैँ, बस अधरोँ तक आने को,
राज़ कोई गर ये बता गया, फिर चिंता की बात नहीँ.

है बस्ती खुश, हर बगिया मेँ,पुश्प-पत्र- फल सभी कुशल हैँ,
अंट-शंट सिरफिरा गा गया, फिर चिंता की बात्त नहीँ.
- डा. रघुनाथ मिश्र
09214313946

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

    सादर
    अनु

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