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Friday, 17 May 2013

एक पुरानी गज़ल्



दोस्तो, एक पुरानी गज़ल, मेरी पुस्तक, 'सोच ले तू किधर जा रा है' ( हिन्दी- उर्दू गज़ल संग्रह) से आप को साझा कर रहा हूँ. आप की प्रतिक्रिया मुझे सम्बल देगी- मैन उसका तहे दिल से इंतज़ार करूँगा.(आप मेरे ब्लोग: raghunathmisra.blogspot.in) पर भी पधारा करेँ और मेरी रचनायेँ पध कर मुझ नौसुइक्जिये ब्लोगर का उत्साहवर्धन करने महती क्रिपा किया करेँ और उसे विकसित करने और जनोपयोगी बनाने मेँ अपने महत्वपूर्ण सुझावोँ से अमूल्य योगदान देँ)

गज़ल:

किसने लगायी आग और किस- किस का घर् जला.
मेरे शहर के अम्न पे कैसा क़हर चला.

क्या माज़रा है दोस्त, चलो हम पता करेँ,
इस बेक़सूर परिन्दे का, कैसे पर जला.

कुछ भेडिये गमगीन हैँ, इस खास प्रश्न पर,
कैसे खुलुस- ओ -प्यार मेँ, अब तक शहर पला.

किसकी ये साज़िशेँ हैँ, हिमाक़त ये कौन की,
विश घोल फज़ाओँ मेँ, चुरा जो नज़र चला.

कल शाम् हुए हादशोँ पे, हो चुकी बहस्.
है प्रश्न इसी दौ र का, आखिर किधर भला.
- रघुनाथ मिश्र्


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