डा.
रघुनाथ मिश्र की पुरानी चुनिन्दा गज़लेँ.
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गज़ल (1)
सोच
ले तू किधर जा रहा है:
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सोच
ले तू किधर ज रहा है.
एक
अज़ूबी ड्गर जा रहा है.
किसका
जादू हुआ है युँ हावी,
तुझको
मीठा ज़हर भा रहा है.
होता
फौलाद है आदमी फिर,
रेत
सा क्योँ बिखर जा रहा है.
तोड
सक्ता है पत्थर जो सिर से,
हाँफता
क्योँ नज़र आ रहा है.
नफरतोँ
के ज़हर घोल दिल मेँ,
प्रेम
पर क्योँ क़हर ढा रहा है.
ज़िंस
की भांति बिकने की धुन मेँ,
तुझमेँ कैसा न असर अ रहा है.
बस
बना झुंझुना दूसरोँ का.
बेवज़ह
जी के मर जा रहा है.
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- डा. रघुनाथ मिश्र
गज़ल (2)
मंज़र है
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प्रतिबन्धित
आंसू और ज़ुल्म-ओ-सितम भरा मंज़र है.
मौत
और हत्या मेँ, कर पाना मुश्किल अंतर है.
तर्क
सटीक, बात सीधी, सब ठीक-ठाक होने पर भी,
खुले ज़ुबाँ,
उससे पहले ही, सीने मेँ
खंज़र है.
तेल
दियोँ मेँ मिल जायेगा, यह विधिवत घोशित है,
रोज़-रोज़
लम्बी क़तार, आता न कभे
नम्बर है.
तर्क
सही और लोग सही, फिर क्युँ छूट गये मुल्ज़िम.
प्रश्न
किया उस दिग्गज़ से क्योँ, माई- बाप वही गुरुवर है.
अस्तित्वोँ
पर हर पल, वह् क़ाबिज़्, अचरज फिर कैसा,
जारी
रहना है सब युँ ही, जब तक आग दबी अन्दर है.
दन्द-फन्द,
दकियानूसी, अफवाहेँ फलीँ- फलेँगी युँ ही,
जब
तक चढी भेडियोँ पर, ये खाल धवल खद्दर है.
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- डा. रघुनाथ मिश्र
गज़ल (3)
क्या करेँ.
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सितम
उनकी आदत है,
क्या करेँ.
अज़ीब
ये नज़ाकत है, क्या करेँ क्या करेँ.
वे महफूज़
हैँ फिर, आग लगा कर,
उन्हेँ ये
रियायत है, क्या करेँ.
आदत
है अपनी आज कल. तूफाँ से उलझना,
इसमेँ ही
हिफाज़त है, क्या करेँ.
लागू करायी
जाय, भेडियोँ की सभ्यता,
ये खास
हिदायत है क्या
करेँ.
बेफौफ ज़ुल्म, साज़िशेँ, दहशतज़दा माहौल,
ये रंग -ए- सियासत है,
क्या करेँ.
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डा. रघुनाथ मिश्र
गज़ल (4)
हम तलाशेंगे
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कितने हो गये तबाह, हम तलाशेँगे
चश्मदीद कुछ गवाह, हम
तलाशेँगे.
ठिठुर
रहे होँ सर्द रात मेँ, असंख्य जहाँ,
वहीँ
पे
गर्म ऐशगाह, हम तलाशेंगे.
यहाँ
ये रोज़ भूख - प्यास - महामारी है,
वहाँ
पे क्योँ है वाह -वाह्, हम तलाशेंगे.
खुलूस-ओ-प्यार
की, आब-ओ-हवा ज़हरने मेँ
उठी
है कैसे यह अफवाह, हम तलाशेंगे.
जिन बस्तियोँ
मेँ, हर खुशी, बाँटी
उनमेँ,
ठहरी है
क्योँ कराह, . हम तलाशेँगे.
बहते हुए
दरिया का, अचानक
युँ ही,
ठहरा है
क्योँ प्रवाह, हम
तलाशेँगे.
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-डा. रघुनाथ मिश्र
गज़ल् (5)
खुशी की तलाश जारी है
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खुशी
की तलाश जारी है.
हँसी का
प्रयास जारी है.
जिस घर ने अँधेरा बोया,
उसी मेँ
उजास जारी है.
कुछ
को अजीर्ण है लेकिन,
शहर मेँ
उपवास जारी है.
लोग सी
देँगे जुबाँ लेकिन,
बोलने
का अभ्यास जारी है.
टूट
जाना था जिसे पहले,
वह
क्रम अनायास जारी है
कितने
हैँ वतन के सौदागर,
ऐसा एक
कयास जारी है.
मिटाये
नाम जो बदनाम कहकर्,
उसी का
इतिहास जारी है.
आज़ादी के तमाम वर्शोँ
मेँ.
आज़ादी की
प्यास जारी है.
- डा. रघुनाथ मिश्र
( मेरी पुस्तक, 'सोच ले तू किधर जा रहा है' हिन्दी, उर्दू गज़ल संग्रह से)