’सहज’ सहज हैं सहज से, कह देते हैं बात।
धारा-प्रवाह सहज से, कहने में निष्णात।
कहने में निष्णात, विषय कोई सा भी हो।
कहते हैं बेबाक, सदन कोई सा भी हो।
कविपुंगव ने काव्य, रचे वे ‘सहज’ सहज हैं।
मेरे हैं प्रिय दोस्त, बिलाशक ‘सहज’ सहज हैं।
2-
सागर सा व्यक्तित्व है, जोश अपार अथाह।
जनवादी आक्रोश का, बहता काव्य प्रवाह।
बहता काव्य प्रवाह, वाक्चातुर्य प्रबल है।
मणिकांचन संयोग, राजनीति में दखल है।
’आकुल’ है कृतकृत्य, ‘सहज’ सा साथी पाकर।
बदल दिया संसार, भरा गागर में सागर।
-डॉ.गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'
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