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Wednesday, 13 January 2016



कुछ भी बनने से पहले सम्पूर्ण इंसान बनना जरूरी है. आध्यात्मिकता में अथवा भौतिक जगत में कितनी ही उन्नति क्यों न कर लें, लेकिन एक समग्र इंसान बने बिना, हमारी हर पहुँच अर्थहीन है.जिसे हम सुख समझते हैं और इंसानियत भूल, उसी में डूब जाते हैं, अंधे हो जाते हैं शेष दुनिया से, वही हमारे सारे दुखों की जड़ है. किताबें पढना -सिर्फ पढने के लिए और उनमें दी गयी शिक्षाओं को जीवन में नहीं उतारना -सूखी हड्डियां चबाने जैसा है.
(हमारे आध्यात्मिक गुरुदेव की नसीहतों का महत्वपूर्ण अंश )
-डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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