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Wednesday, 13 January 2016

मुक्त छंद कविता

मरण तयशुदा
मालूम सबको
क्यूँ घबराएँ
मरने से.
जो होना है
हो के रहेगा
कुछ न बदलना
डरने से.
कर्म सिर्फ हाथों में है
कर लें बेहतर से बेहतर
जो पाएंगे -जब पाएंगे
पाएंगे बस करने से.
करें सार्थक
छोड़ें आलस
होनापन बस
बन्ने से.
-डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज

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