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Tuesday 28 January 2014

कुछ विचार :


दुनिया भर में फैले असंख्य मित्रों-जन-गण से व्यक्तिशः संपर्क नामुमकिन है और फेस बुक ने हमें इतना करीब ला दिया है कि हम आसानी से, जब भी नेट पर हों, संवाद कायम कर सकते हैं. लेखक हैं तो साहित्य के माध्यम से और यदि लेखक नहीं हैं तो अपने जीवनानुभव,  आपस में status पर लिख क, र ऐसा किया जाना और एक पल मेँ  अपने मित्रों तक न केवल पहुँच जाना, बल्कि समाज-देश-घर-परिवार -कला-धर्म- अध्यात्म आदि क्षेत्रों में भोगे हुए यथार्थ /अनुभव , आपस में बाँट कर,  स्वस्थ मनोरंजन सहित,  समाज के बेहतरीकरण में बहुमूल्य योगदान कर सकते हैं- सीख सकते हैं-सिखा सकते हैं -आदि आदि.
लेकिन ऐसा हम क्यूँ नहीं करते -किसने रोका है और क्या संकोच है-मैं समझ नहीं पाया। कुछ मित्र कभी कुछ पोस्ट नहीं करते और  न  ही  मित्रों की  पोस्ट्स को पढ़ कर उसे like या उस पर comment   करते। ऐसे मित्रों का फेसबुक की दुनिया में क्या काम है और उनके यहाँ होने की आखिर प्रासंगिकता क्या है. मैं चाहूंगा कि आप सभी सुधी मित्र इसी विषय पर अपने विचार साझा करें।
यकीनन मनोरंजन हमारी जिंदगी से अलग कतई नहीं है, लेकिन भोडा-अस्लील-नंगा-अशोभनीय -हमारी स्वस्थ सांस्कृतिक- सामाजिक परम्पराओं के विरुद्ध मनोरंजन -मनोरंजन नहीं है, बल्कि मैं कहूंगा-आत्मघाती और समाज में कोढ़/कैंसर फ़ैलाने जैसा है.
यहाँ आप की पसंद की हर चीज मौजूद है, लेकिन निर्लज्जता और बेहयाई से तो अगर इंसान परहेज नहीं करेगा तो क्या हम जानवरों से यह आशा करेंगे? मैं समझता हूँ- सही जवाब है- बिलकुल नहीं। जो बात अपनी पत्नी से साझा नहीं कर सकते ,जिन चित्रों  को हम अपनी पत्नी-बच्चों- दोस्तों को दिखने में लज्जा महसूस करते हैं, उन बातों और चित्रों को यहाँ ,अपना नाम और प्रोफाइल चित्र बदल कर , सरे आम परोसते हुए यदि हम  एक पल के लिए स्वयं को मनुष्य होने का एहसास कर लें और सभ्य-सुसंस्कृत-सुशिक्षित समाज/ परिवार से होने की अपनी जिम्मेदारी पर विचार कर लें, तो यही फेसबुक हमें निखारने का काम करने लगेगा और हमारा अच्छा मित्र सिद्ध हो सकता है-ऐसा मेरा मानना है -आप क्या सोचते हैं-कृपया मुझसे साझा करेंगे तो मेरे -आप- सभी के लिए यह सही दिशा में बढता हुआ एक प्रभावी क़दम हो सकता है. 

सद्भावी,
डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
09214313946

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