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Thursday 23 October 2014

 शुभ दीपावली-पूरी दुनियाँ के हर गरीब-अमीर-खास-आम को मेरी और परिवार की ओर से. इस बार कुछ इस तरह मनाएं- यह प्रकाशपर्व कि, हमारे दिलों से गरीब-अमीर-ऊंच-नीच-जाति-धर्म-सम्प्रदाय जैसे भेद-भावों के गढ़-मठ सभी ढहा दिये जाएं. सीमाविहीन दुनियाँ के स्थापना की नीव रक्खें- इस बार दिवाली में और परछिद्रान्वेषण की परंपरा को नेस्तनाबूद कर, सबमें अछाइयों को ही ढूंढें. नकारात्मकता को अलविदा कह दें और प्यार, से एक वृहद संयुक्त परिवार के रूप में, सभी भारतवासी रहना शुरू करें. सदाशयता भोजन में-प्रेम नाश्ते में-आदर भाव बड़ों के प्रति-प्यार छोटों के प्रति और घृणा से सदैव के लिये मुक्ति-ऐसा हमारा मिशन हो-अबसे जीवन भर के लिये. अवसर मिला है-रूठों को मनाने का-बिछड़ों को साथ लेने का-दुखियों को गले लगाने का-अकेलेपन से तप्त जन के आंसू पोछने का और देश की दरिद्रता हटाने का-जमाखोरों को बेनकाब कर उनसे हमारा हक़ छीन लेने का.ऐसे अनेक हैं जिन्हें सहारे की जरूरत है-उनको महसूस कराएं की इतने बड़े देश में-सवा अरब देशवासियों में कोई भी बेसहारा और अकेला नहीं और यदि ऐसा है तो हम सब उसे अपना सगा महसूस कराने का अभियां चलाएं. किसी भी पर्व का यही उद्देश्य होना चाहिये न कि सिर्फ खाना-पीना-मस्त रहना और स्वयं से अलग कुछ नहीं सोचना. सोने और खाने का नाम जीवन कदापि नहीं-जीवन नाम है अनवरत आगे बढ़ते रहने और सबको साथ लेकर चलने की अटूट लगन का. आइये आज जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें-एक ऐसा लक्ष्य, जिसमें एक सबके लिये -सब एक के लिये-सब सभी के लिये. तब पूरा होगा इस पुनीत पर्व का उद्देश्य. लक्ष्मी पूजा से नहीं-कर्म और सद्भाव से खुश होंगी. .देखें किसे अजीर्ण हुआ है और किस घर में भात नहीं' यदि ऐसा करने का अबियान छेड़ें और लक्ष्य तक पहुंचने से पूर्व चैन से नहीं बैठें तो आज के पर्व कि यही असली प्रासंगिकता होगी
और पर्व मनाने क़ा उद्देश्य भी पूर्ण होगा.
शुभेच्छु,
डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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