Followers

Thursday 8 August 2019

*डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ के पसंदीदा/ चुनिन्दा दोहे*


बुरा भले ही मानिये, असल बदल नहिं पाय।
मैं से कितना चिपक लो, हरगिज साथ नजाय।

खुद की गलती मान ले,यदि गलती हो जाय।
यही सबक वह मन्त्र है, जिससे हृदय अघाय।

गर बदले की आग में, जलेँ रात-दिन आप।
निस्चित ही यह जान लेँ, मिट न सके सन्ताप।

कहीं कहकहों की धमक, है कहिं हाहाकार।
आओ चल कर देख लेँ, क्यों यह मारामार।

यह दुनिया है मदरसा, सीखें यहाँ अथाह।
गर दुनिया को पढ़ लिया, क्या कहने भइ वाह।

निर्मल मन से जीतिए,भारी-भरकम जंग।
सद्पुरुशों की सीख में, सच्चा जीवन ढंग।

मन मयूर थिरके कभी, हों तक़लीफें दूर।
'
सहज' कहो यह चाह है,या दिल चकनाचूर।

निरख तुझे सब मिल गया,जस खोया सम्मान।
ऐसा ही चलता रहा,तो न गिरेगा मान ।

*
आज नहीं तो फिर नहीं,कर लेँ दो-दो हाथ।*
*
मौसम का तेवर समझ,सोच कौन है साथ।*

नफ़रत बाहर काढिये,फिर अंदर सुखधाम।
बन असली मानव करो,सार्थक अपना नाम।

बिगुल बजा संघर्ष का,अरि न जाय अब भाग।
सदियों से हम सो रहे,अब तो जायें जाग।

तुम नदिया के पार हो,मैं हूँ खुद इस पार।
कोई फर्क़ नहीं प्रिये,नहीं घटेगा प्यार।

निकट सांझ आ ही गयी,जब जीवन की मीत।
गहो राह अब सृजन की,भूलो ग्स्या अतीत।

मन में है गाली मगर, जुबान मिसिरी युक्त।
'
सहज' वही संसार में, हैं असली अभ्युक्त।

पिछली 2018 की होली बाद 'सहज' के दोहे:
000
आई और चली गई, फिर होली इस बार।
होली तो होली मगर, उतरा नहीं खुमार।

आते हैं शिक्षा लिए,यूं ही सब त्योहार।
यह इंसानी फ़र्ज़ है, सीखें म्रिदु व्यवहार।

अगली होली के लिए, बने योजना खास।
नफ़रत -गुस्सा त्याग दें, दिल से मिटे मिठास ।

यह होली है कह गई,हम सबसे इक बात।
मेहनत करके खाइए, बदलेंगे हालात

चलें काम पर मन गया, होली -रंग व फाग।
'
सहज' नहीं कोई बचे,मन में काला दाग।

शुभ रात्रि मेंआप सभी, लेलें सुखद विश्राम।
कल प्रात: से ही मिले,रात्रि तलक सुखधाम।

झोपड़ियों में जिन्दगी,असल दिखे है आज।
सभ्य-'सहज' जिनको कहें, मंडराते जस बाज।
मन के नियमन से सदा,मिलती शक्ति अपार.
'
सहज' स्नेह अपनाइए,तब हो बेड़ा पार.
@
डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
                                         000

*
अधिवक्ता /साहित्यकार*
*© COPYRIGHTS RESERVED*



No comments:

Post a Comment