मात्राभार 32
पदांत विहीन
समान्त- आना
मेरी प्रिय
गौरैया आओ मेरे आँगन में रोजाना.
परिजन इंतजार
करते हैं छेड़ो कोई मधुर तराना.
परिजन सारे
भूखे रहते जब तक तुम नहिं दर्शन देती,
मन आनंदित हो
उठता है जब तुम लेती पानी- दाना.
आँगन सूना-सूना लगता तुम बिन सारे
घर वालों को,
हमको नहीं कभी
भाता है तुम
बिन कुछ भी पीना-खाना.
तुम सदस्य बन
गयी हो घर की ऐसा हमको लगता है',
रोज तुम्हें
हम याद करेंगे आना कहीं भूल न जाना.
'सहज' तुम्हारे गीत सुहाते महकाते घर-आँगन को वे,
हम सबकी आदत
में है अब साथ तुम्हारा
हर पल पाना'.
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@डॉ.रघुनाथ श्र 'सहज'
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