*तरह-तरह के फूल
एक साथ -एक उपवन में
तरह-तरह के लोग
एक साथ-एक घर में
तरह-तरह की जातियाँ
गाँव-शहर-कस्बों में
तरह- तरह के परिन्दे
एक डाल-व्रिक्ष-देहरी पर
मंदिर -मस्जिद -गुरुद्वारों की छतों पर कहाँ है इनमें फिरकापरस्ती
कहाँ है इनमें विद्वेश
कहाँ है इनमें तनाव
क्यों नहीं सीखते- हम इनसे
भाईचारा
आपसी सहयोग
कौमी एकता
भ्रातृत्व
सेवा
प्यार की फसल उगाएं
ह्रिदयों का बाग लगाएं
खुश रहें -खुश रक्खें
आओ न मितवा
कोई गीत गुनगुनाएं
जीवन को संगीत बनाएं
समाज -देश-दुनियां को
ऐसे सजाएँ*
*@डा०रघुनाथ मिश्र 'सहज'
अधिवक्ता /साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित
DrRaghunath Mishr Sahaj
good poem
ReplyDelete