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Thursday 8 August 2019

*गीत गुनगुनाएं*


*
तरह-तरह के फूल 
एक साथ -एक उपवन में 
तरह-तरह के लोग 
एक साथ-एक घर में 
तरह-तरह की जातियाँ 
गाँव-शहर-कस्बों में 
तरह- तरह के परिन्दे 
एक डाल-व्रिक्ष-देहरी पर 
मंदिर -मस्जिद -गुरुद्वारों की छतों पर कहाँ है इनमें फिरकापरस्ती 
कहाँ है इनमें विद्वेश 
कहाँ है इनमें तनाव 
क्यों नहीं सीखते- हम इनसे 
भाईचारा 
आपसी सहयोग
कौमी एकता
भ्रातृत्व
सेवा 
प्यार की फसल उगाएं 
ह्रिदयों का बाग लगाएं 
खुश रहें -खुश रक्खें 
आओ न मितवा
कोई गीत गुनगुनाएं 
जीवन को संगीत बनाएं 
समाज -देश-दुनियां को 
ऐसे सजाएँ*
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डा०रघुनाथ मिश्र 'सहज'
अधिवक्ता /साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित

DrRaghunath Mishr Sahaj

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