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Friday, 16 August 2013

ghazal

करनी और कथनी में अंतर.
जीवन में चल रहा निरंतर.
काम नहीं तो दाम नहीं फिर,
कुछ न करेंगे जादू –मंतर.
कदमताल कर यूँ ही नाहक,
क्यूँ कर डाला नष्ट मुक़द्दर.
लड़ने चला जगत से पागल,
दुश्मन बैठा खुद के अन्दर.
करता रहा शिकायत सबकी,
झांक न पाया खुद के भीतर.
होगी जिसकी सोच सार्थक,
होगा वह ही मस्त कलंदर.
कर ले यदि छुट्टी नफ़रत से,
प्यार आएगा फाड़ के छप्पर.
मीत बना ले दिल को अपने,
बन जायेगा जीवन बेहतर.
लक्ष्य बने सर्वोच्च तभी ही,

कम से कम मिल सके उच्चतर.
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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