Followers

Friday 16 August 2013

DR.RAGHUNATH MMISHRA 'SAHAJ' KI GHAZAL.

ग़ज़ल:
आज़ाद है वतन सही, आज़ाद हम नहीं.
खाई गरीब अमीर की, अब भी ख़तम नहीं.
हमने संजोये थे कभी, खुशहालियों के ख्वाब,
आँखों में बाढ़ आज भी, अश्कों की कम नहीं.
रोटी की मांग पर हमें, हैं जेल- गोलियां,
चूल्हे भुझे पड़े थे जो, अब भी, गरम नहीं.
है देश आज भी उन्हीं, गुंडों के हाथ में,
खायेंगे बेच मुल्क वे, बीतेंगे ग़म नहीं.
निचुड़े हुए खू पर खड़े, शाही महल यहाँ,
लाशों के रोज़गार के, अड्डे हैं कम नहीं.
बुनियाद में भरी हुई है, रेत बेशुमार,
दिवार हिल रही है अब, मकाँ में दम नहीं.
दम तोड़तीं जवानियाँ, अरमां लिए हुए,
बाकि रहा उनके लिए, कोई सितम नहीं.
-डा.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
(मेरी पुस्तक 'सोच ले तू किधर जा रहा है'- (हिंदी-उर्दू ग़ज़ल संग्रह ) से.)

No comments:

Post a Comment