'कौशिकी' त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका - Apni Maati: News Portal
आदरणीय कैलाश झा .किंकर' साहिब. आप ने बहुत सुब्दर ब्लॉग बनाया है.बधाई.
सादर,
सहज
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Monday, 26 August 2013
'कौशिकी' त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका - Apni Maati: News Portal
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आदरणीय कैलाश झा .किंकर' साहिब. आप ने बहुत सुब्दर ब्लॉग बनाया है.बधाई.
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आदरणीय कैलाश झा .किंकर' साहिब. आप ने बहुत सुब्दर ब्लॉग बनाया है.बधाई.
सादर,
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'कौशिकी' त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका - Apni Maati: News Portal
'कौशिकी' त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका - Apni Maati: News Portal
आदरणीय कैलाश झा .किंकर' साहिब. आप ने बहुत सुब्दर ब्लॉग बनाया है.बधाई.
सादर,
सहज
आदरणीय कैलाश झा .किंकर' साहिब. आप ने बहुत सुब्दर ब्लॉग बनाया है.बधाई.
सादर,
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Friday, 16 August 2013
फेसबुक और मैं.
दोस्तों ! या तो मेरे ऑपरेट करने के तरीके में कोई कमी है या कोइ साज़िश मेरे खिलाफ़ चल रही है, जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ. फेसबुक मैंने ५ वर्ष पूर्व बनाया था, जो 16 जून' 13 तक सफलता पूर्वक चला. अचानक १७ जून'१३ को जब लोग इन किया तो लिखा हुआ आया " YOUR ACCOUNT HAS BEN TEMPORARILY SUSPENDED". फेसबुक ने आइडेन्टिटी वेरीफाई कराई .जो तकनीकी जानकारी कम होने से सफलता नहीं मिली. तदुपरांत एक के बाद एक -5 ऍफ़.बी. आई.डी. और बनाई औए धीरे -धीरे सभी बंद होती गयीं . आज अभी जब फेसबुक पर आया और लोग इन किया तो फिर वही - FB का रटा- रटाया फिर वाक्य दोहराया गया-PLEASE VERIFY YOUR IDENTITY. अंततः मैं अब इस निष्कर्ष पर पहुंचा की लोग- मेरे ही कुछ अपने-ऍफ़.बी. टीम या अज्ञात कारणों से अब मैं ऍफ़.बी. नहीं चला पाउँगा. अतः भरी मन से ऍफ़.बी. को अलविदा कह रहा हूँ और मुझसे जुड़े सभी मित्रों-हमदर्दों-सहयोगियों का ह्रदय से आभारी हूँ, जिन्हों ने मुझे सराहा-प्रोत्साहित किया और हर क़दम पर मेरे साथ रहे.
फेसबुक से अलविदा कहते हुए आप सभी गूगल+ से जुड़े मित्रों से विनम्र अनुरोध है की वे अब मुझे नेरे ब्लॉग सृजन raghunathmisra.blogspot.in पर मिला करें और पढ़ा-पढाया करें और साथ ही अपने बहुमूल्य सुझावों/ प्रतिक्रियावों से प्रोत्साहित किया करें.
साभिवादन-सादर-सप्रेम,
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'
दोस्तों ! या तो मेरे ऑपरेट करने के तरीके में कोई कमी है या कोइ साज़िश मेरे खिलाफ़ चल रही है, जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ. फेसबुक मैंने ५ वर्ष पूर्व बनाया था, जो 16 जून' 13 तक सफलता पूर्वक चला. अचानक १७ जून'१३ को जब लोग इन किया तो लिखा हुआ आया " YOUR ACCOUNT HAS BEN TEMPORARILY SUSPENDED". फेसबुक ने आइडेन्टिटी वेरीफाई कराई .जो तकनीकी जानकारी कम होने से सफलता नहीं मिली. तदुपरांत एक के बाद एक -5 ऍफ़.बी. आई.डी. और बनाई औए धीरे -धीरे सभी बंद होती गयीं . आज अभी जब फेसबुक पर आया और लोग इन किया तो फिर वही - FB का रटा- रटाया फिर वाक्य दोहराया गया-PLEASE VERIFY YOUR IDENTITY. अंततः मैं अब इस निष्कर्ष पर पहुंचा की लोग- मेरे ही कुछ अपने-ऍफ़.बी. टीम या अज्ञात कारणों से अब मैं ऍफ़.बी. नहीं चला पाउँगा. अतः भरी मन से ऍफ़.बी. को अलविदा कह रहा हूँ और मुझसे जुड़े सभी मित्रों-हमदर्दों-सहयोगियों का ह्रदय से आभारी हूँ, जिन्हों ने मुझे सराहा-प्रोत्साहित किया और हर क़दम पर मेरे साथ रहे.
फेसबुक से अलविदा कहते हुए आप सभी गूगल+ से जुड़े मित्रों से विनम्र अनुरोध है की वे अब मुझे नेरे ब्लॉग सृजन raghunathmisra.blogspot.in पर मिला करें और पढ़ा-पढाया करें और साथ ही अपने बहुमूल्य सुझावों/ प्रतिक्रियावों से प्रोत्साहित किया करें.
साभिवादन-सादर-सप्रेम,
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'
ghazal
करनी और कथनी में
अंतर.
जीवन में चल रहा
निरंतर.
काम नहीं तो दाम
नहीं फिर,
कुछ न करेंगे जादू –मंतर.
कदमताल कर यूँ ही
नाहक,
क्यूँ कर डाला नष्ट
मुक़द्दर.
लड़ने चला जगत से
पागल,
दुश्मन बैठा खुद के
अन्दर.
करता रहा शिकायत
सबकी,
झांक न पाया खुद के
भीतर.
होगी जिसकी सोच
सार्थक,
होगा वह ही मस्त
कलंदर.
कर ले यदि छुट्टी
नफ़रत से,
प्यार आएगा फाड़ के
छप्पर.
मीत बना ले दिल को
अपने,
बन जायेगा जीवन
बेहतर.
लक्ष्य बने सर्वोच्च
तभी ही,
कम से कम मिल सके
उच्चतर.
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'
DR.RAGHUNATH MMISHRA 'SAHAJ' KI GHAZAL.
ग़ज़ल:
आज़ाद है वतन सही, आज़ाद हम नहीं.
खाई गरीब अमीर की, अब भी ख़तम नहीं.
हमने संजोये थे कभी, खुशहालियों के ख्वाब,
आँखों में बाढ़ आज भी, अश्कों की कम नहीं.
रोटी की मांग पर हमें, हैं जेल- गोलियां,
चूल्हे भुझे पड़े थे जो, अब भी, गरम नहीं.
है देश आज भी उन्हीं, गुंडों के हाथ में,
खायेंगे बेच मुल्क वे, बीतेंगे ग़म नहीं.
निचुड़े हुए खू पर खड़े, शाही महल यहाँ,
लाशों के रोज़गार के, अड्डे हैं कम नहीं.
बुनियाद में भरी हुई है, रेत बेशुमार,
दिवार हिल रही है अब, मकाँ में दम नहीं.
दम तोड़तीं जवानियाँ, अरमां लिए हुए,
बाकि रहा उनके लिए, कोई सितम नहीं.
-डा.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
(मेरी पुस्तक 'सोच ले तू किधर जा रहा है'- (हिंदी-उर्दू ग़ज़ल संग्रह ) से.)
आज़ाद है वतन सही, आज़ाद हम नहीं.
खाई गरीब अमीर की, अब भी ख़तम नहीं.
हमने संजोये थे कभी, खुशहालियों के ख्वाब,
आँखों में बाढ़ आज भी, अश्कों की कम नहीं.
रोटी की मांग पर हमें, हैं जेल- गोलियां,
चूल्हे भुझे पड़े थे जो, अब भी, गरम नहीं.
है देश आज भी उन्हीं, गुंडों के हाथ में,
खायेंगे बेच मुल्क वे, बीतेंगे ग़म नहीं.
निचुड़े हुए खू पर खड़े, शाही महल यहाँ,
लाशों के रोज़गार के, अड्डे हैं कम नहीं.
बुनियाद में भरी हुई है, रेत बेशुमार,
दिवार हिल रही है अब, मकाँ में दम नहीं.
दम तोड़तीं जवानियाँ, अरमां लिए हुए,
बाकि रहा उनके लिए, कोई सितम नहीं.
-डा.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
(मेरी पुस्तक 'सोच ले तू किधर जा रहा है'- (हिंदी-उर्दू ग़ज़ल संग्रह ) से.)
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