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Thursday 25 October 2012

मुक्तक्

करो मत बात धरती की, गगन के इन दलालोँ की.
ये   पत्थर हैँ   न पिघलेँगे, ह्रिदयभेदी  हवालोँ   से.
निभाओगे   कहाँ तक और, इन झूठे  खुदाओँ को,
उघाडो  बर्क   के  चेहरे, छिपे   पैने   सवालोँ    से.
                                 00000

1 comment:

  1. वाह....
    बहुत बढ़िया......

    सादर
    अनु

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