अपने लिए सभी जीते हैं.
सोते - खाते और पीते हैं .
उनके लिए न क्यूँ हम सोचें,
जो जीवन - घर में रीते हैं .
लाखों मीटर कपडे बन कर,
रोज फटी अंगिया सीते है .
जरा संभल अब रहना होगा.
अपने बीच छिपे चीते हैं.
रक्षक की वर्दी में चिपके ,
खतरनाक नकली फीते हैं.
हर निर्णय में सरल-सहायक,
निश्चल मधुर बात - चीते हैं.
'सहज' जिया जीवन जिसने भी,
उसके पल आसां बीते हैं.
@डा.त्रघुनाथ मिश्र 'सहज'
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