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Sunday, 25 January 2015

डा. 'सहज' के चुनिन्दा दोहे:

ह्रदय  मिले  तो  सब  हुआ,  संभव  और  आसान.
रातें   भी    छोटी         हुईं,  होने    लगे    बिहान.
सुबह-सुबह  जो  भी  मिले,  करिए  उसे   सलाम.
यदि   ऐसा    होने    लगे,  सुन्दर  बने     अवाम .
पशुओं   में   भी    एकता, है    अपनों   के   साथ .
इंसानों    में    फिर  नहीं,      दुर्लभ    ऐसे   पाथ.
जब  छोटा  था   बाप   ने, जिसे    सिखाये   बोल.
कहता   मैं  छोटा   नहीं, चुप  कर मत  मुंह खोल .
जब    अमीर   बेटा  हुआ,  पिता  हुआ    बदहाल .
बहु   हवा  में  उड़   रही, फिर   भी  बाप   निहाल.
बेटी  का  रिश्ता   हुआ,  परिजन   के   बड  भाग.
पर  दहेज़  के  दैत्य  ने ,  उसे   लगा   दी     आग.
अनावृष्टि  -  अतिवृष्टि  से,  हुआ  किसान  तबाह.
इक  झटके    में    हो  गयी, उमर  वाह   से  आह.
छोटी -   छोटी     बात  पर ,सुत    जाता  था   रूठ.
उसे   मनाने    में   हुआ ,   बाप   स्वयं  इक    ठूंठ.
उंगली   पकड़ी  बाप  ने,   चलना  दिया    सिखाय.
अब  बारी   है   पुत्र   की,  बाप   न    गिरने    पाय.
परिवर्तन   बिन   है   नहीं,   कोई  प्रगति- विकास.
यूँ   समुचित  बदलो   अगर,   पूरी   करनी   आस.
है   जहान     की     हर  ख़ुशी,   सिर्फ  हमारे  हाथ.
भाग्य  नहीं  बस  कर्म   ही,  है  हम  सबके   साथ.
'सहज' जियें  सद्कर्म  हो,  जीवन  भर  का  ध्येय.
जो  बनने   की   दे   दिशा,    सिर्फ   वही   अध्येय.
धरती  खुद   इक  मंच   है, यह  दुनिया  इक  खेल.
'सहज'   सभी   दर्शक  बने,  राजा -  रंक  -  पटेल.
धन -  दौलत   से   दोस्ती ,   इंसा    को     दुत्कार.
छूट     यहीं   सब  जायगा,  संग    जाएगा    प्यार.
करके  अच्छे    कर्म  हम,  बनें   असल   किरदार.
जब   दुनिया   से   हों    बिदा,   ले   जाएँ    आभार.
दिया   बुजुर्गों   को   नहीं,    यदि   सेवा  -  सत्कार.
जीवन    सुन्दर    ले  नहीं,   है   पाता       आकार .
सब  खुद  में  ही   लीन    हैं,   खुदगर्जी   का   दौर.
भाषण   में    सारा  जगत,  दिल  में खुद को और.
लेलें यदि  संकल्प सभी, 'सबका  सुख -दुःख एक.
दुःख न  टिके इक  पल  'सहज', देवे   माथा   टेक.
दुःख-सुख-संकट  हैं  उपज, केवल  मन  के  मीत.
यदि  खुश रहना  सीख  लें,  ये  खुद   जाएँ    बीत.
जीवन  का   आनंद  ले,   जग  के  ले  दुःख   बाँट.
यूँ   कर  जीवन   सार्थक,  है   यह   ही  सच   ठाट.
सर  पर यदि मन भर अहम्, इक पल  लगे पहाड़.
सकारात्मक   सोच  से,  मन - मालिन्य     उखाड़.
जप-तप-पूजा-पाठ  से,   नहीं   मिले   कुछ   मीत.
सिर्फ   प्रेम   इक   सूत्र   है,   जिससे   सारी   जीत.
तन    पर   उजला   आवरण,    अन्दर    भ्रष्टाचार.
निश्चित   ही   यह   जान   ले ,  इक  दिन  बंटाढार.
@डा.रघुनाथ मिश्र   'सहज'


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आज की ग़ज़ल:


अपने  लिए  सभी  जीते   हैं.
सोते - खाते   और  पीते    हैं .
उनके लिए न क्यूँ हम  सोचें,
जो  जीवन - घर   में  रीते  हैं .
लाखों   मीटर  कपडे  बन कर,
रोज  फटी  अंगिया   सीते   है .
जरा संभल  अब  रहना  होगा.
अपने   बीच    छिपे  चीते   हैं.
रक्षक   की  वर्दी   में   चिपके ,
खतरनाक   नकली  फीते   हैं.
हर निर्णय  में सरल-सहायक,
निश्चल   मधुर   बात - चीते हैं.
'सहज' जिया जीवन जिसने भी,
उसके    पल   आसां    बीते    हैं.
@डा.त्रघुनाथ  मिश्र 'सहज'

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