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Sunday, 26 October 2014

मेरा एक अभी उपजा मुक्तक:


आज कुछ वक़्त,बदला सा लगे है.
वह भला इंसान, पगला सा लगे है.
आंख जैसी कल थी, वैसी है मगर,
सूर्य का प्रकाश,धुंधला सा लगे है.
@डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

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