ग़ज़ल
जान
कर अनजान हो गए
जब
से वे महान हो गए
भागते
ही जा रहे अबाध
लक्ष्य
भी अनुमान हो गए
जो
जंचेगा वह करेंगे हम
अब
यही विधान हो गए
हर
सुबह फंसे कोई नया
यह
नए दिनमान हो गए
एकता
की पीठ में छुरा
जारी
फरमान हो गए
वोट
के लिए बड़े-बड़े
यज्ञ-पुन्य-दान
हो गए
चुनाव
सर पे है इसी लिए
सब
कठिन आसान हो गए
विशिष्ट
सख्शियत की मांग पर
आदमी
सामान हो गए
कल
तलक थे जो जमीन वे
आज
आसमान हो गए
०००
जन
कवि डा.रघुनाथ मिश्र
३-के-३०,तलवण्डी
कोटा-३२४००५(राज.)
मोबा.०९२१४३१३९४६
ए-मेल.
00000
ग़ज़ल
हमने
जोड़ा हृदय से हृदय को सदा
पास
आने से यूँ दर गयी आपदा
दी
दुहाई सदा जिसने कानून की
हो
रहा है उसी से दहन कायदा
हमको
दायित्व का भान हर पल रहा
दिल
में आया न नुकसान या फायदा
जो
है भीतर उजागर भी होगा कभी
होगा
निर्णय तदनुरूप बाकायदा
आशियाना
सुरक्षित हो ये लक्ष्य था
हो
गया अब वो पुख्ता व राहत्ज़दा
प्यार
से भारी ताकात कोई भी नहीं
सीख
लेने से होंगे न हम गमज़दा
-जन
कवि डा. रघुनाथ मिश्र
३-के
-३०,तलवण्डी,
कोटा-३२४००५(राज.)
मोबा.ओ९२१४३१३९४६
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मुक्तक्
तुम
सदा खुश रहो और सलामत रहो.
प्यारे-प्यारे
दिलोँ की अमानत रहो.
खुश
रहेँ तुमसे सब है यही जिन्दगी,
मेरी-
अपनी- सभी कि ज़मानत रहो.
डा.
रघुनाथ मिश्र्
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दोहे
दे
न सके यदि प्यार तो, दुख न भूल कर देय.
जीवन
मुश्किल से मिले, जान न यह कोइ पेय.
खोज
निकाले ज़हर यदि,खुद ही के दिल माँहि.
भौतिक
दुख नहिँ व्यापता,साधारण वह नाहिँ.
डा.
रघुनाथ मिश्र
0000
गीत्
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