ग़ज़ल
लेखनी
है लेखनी,रोटी नहीं मेरी.
बात
बहुत बड़ी है,छोटी नहीं मेरी.
साफ़-साफ़
कह डाला, बस यूँ ही,
अब
है मुसीबत में, लंगोटी मेरी.
दिक्कत
न कभी कोई, पेश आई है,
कारण
कि लिखावट, बड़ी मोटी मेरी.
अकाल
मृतु ले गयी, उसकी माँ को,
रोई बडी, संवरी नहीं, चोटी
मेरी.
ठीक ही
आते रहे, परिणाम सब्,
नियत ना रही
, कभी खोटी मेरी .
देश की
धरोहर हैं, ये सब,
रुधिर,
माश , साँसें , बोटी मेरी.
फरेबियोँ
के साथ कभी भी निभी नहीं,
आदत है
यही दोस्तों, खोटी मेरी.
०००
-डा. रघुनाथ मिश्र्