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Saturday 27 July 2013

दोहे

रुक-रुक  कर  आने लगी,    है   फिर से  बरसात.
रिमझिम -रिमझिम की झड़ी ,भीग रहा मन-गात.

कृषकों     में     आल्हाद    है ,  लहरायेंगे    खेत.
आएगा   सब  लौट  अब , बिगाड़ा  ब्याज  समेत 

महंगाई    की   मार  से, जीवन    हुआ      तबाह.
झड़ी  लगी  बरसात  की,   अब  होगी  फिर   वाह.

आसमान   से  अनवरत,   बरस    रही  है  आस. 
अब    अंधियारा    फाड़ कर, आई   ज्यूँ उजियास.

अभिनन्दन     बारिश   तेरा,  करती  धरती आज.
जलसा      सा    माहौल है, है खुशियों    का साज.
_डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

चुनिन्दा मुक्तक

बैर  कुदर त  से,  कभी  चलता   नहीं.
बिन किये खाया, सदा   पचता   नहीं.
आदमी ने लाख  कोशिश   कर  लिए,
कर्म   बिन  इतिहास  है बनता  नहीं.
                 000
कर्म  बिना  कुछ  दे   न  सके   भगवान.
बिना  बने  कुछ   काम   न  आये  ज्ञान.
प्यार नहीं जिसमें गरीब वो सख्स बड़ा,
है जिसमें  भाई-चारा  वह  ही  धनवान.
                  000
जिंदगी बस जिंदगी है.
वो  खुद  ही  बंद गी  है.
बचना  है किसी से  तो,
वो  सिर्फ  गन्दगी    है.
              000
-डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

दोहा

दोहा:
यश-अपयश को भूल जा, कर जीवन साकार.

खुदगर्जी को त्याग कर,  ही मिलता  आधार.
डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Monday 22 July 2013

gazalen

डा. रघुनाथ मिश्र  की दो गज़लें 
               000
देखा  कुदरत का ऐसा कहर ना  कभी. 
देखा  गुस्से  का  ऐसा असर ना  कभी. 

यूँ   तो  आना  व  जाना चला  ही  करे . 
देखा  होना  यूँ अंतिम  सफ़र ना कभी . 

मार डाले  न  छोड़े  किसी  भी   तरह.  
देखी  लहरों  में  ऐसी  लहर ना  कभी . 

लेखनी  लिख ग़ज़ल-गीत   ऐसे सदा . 
हों   मुखर भाव टूटे  बहर  ना   कभी . 

कुछ   करें   अब  असरदार यारो उठो . 
बद्विचारों  का  लिले  ज़हर  ना  कभी . 

हो 'सहज' ज़िन्दगी जी लें जीभर सभी . 
तू   बुराई  पे    हरगिज़ ठहर ना   कभी .  
                          000

सुनता   नहीं   कोई  है   बात क्या  कीजै . 
दुश्मन   लगा   रहा  है  घात क्या   कीजै . 

किसलय के पास आ रहा बसंत यकीनन . 
डाली   पे  पक  चुके  जो पात क्या   कीजै . 

चंद  मर  गए  अजीर्ण   से  है  समाचार में . 
गावों  में   भूख पर  उत्पात     क्या   कीजै . 

चुनाव आ गए हैं  सर पे  इस लिए  शायद . 
उठा   लिया   है अब  आपात  क्या  कीजै . 

कुदरत से थी तनातनी सदियों से चल रही . 
यकबयक        ये   बज्रपात   क्या      कीजै . 

वो  था  अतीत  लौट  कर  न आयेगा  कभी . 
आज  के  हैं  हाथ  में   हालात   क्या  कीजै . 
                             000
डा . रघुनाथ मिश्र 'सहज'



दो छणिकाएं

दो छणिकाएं


आंसू 
पी गया हूँ 
मतलब 
गम खा गया हूँ 
ख़ुशी 
महफूज़  रहे कैसे 
वही करना /वैसे ही रहना 
सीख गया  हूँ 
        ००० 

प्यार 
 दिल में होता है 
अन्दर है तो 
पवित्र/ असली/ सर्वाधिक शक्तिशाली 
इज़हार  ज़रूरी  नहीं 
आँखों में दिख जाय 
बिना संवाद  समझ में आ जाय 
वही है 
नि:स्वार्थ/ असली/ निश्छल 
प्यार 
                     ००० 
डा. रघुनाथ मिश्र  'सहज'

Sunday 21 July 2013

DR.RAGHUNATH MISRA 'SAHAJ' KE MUKTAK

ड. रघुनाथ मिश्र  'सहज'  के
बहती हुई गंगा है, नहा लो, कुलांच लो. 
माकूल ये समय है, निरीहोँ को फाँस लो. 
अवसर असर  बनाने का फिर आये न आये, 
ऐसे मेँ किसकी जान, काम की है जाँच लो. 
00000 
सर से बँधा हुआ कफन, जल्दी उतर गया.
मरने तलक् निर्भीक वह,इक पल मेँ डर् गया. 
द्रिढता बडी दिखी थी,भाशणोँ मेँ आग थी. 
उम्मीद के प्रतिकूल, क़द वो छोटा कर गया. 
00000
ढाई आखर, वेद - पुराण सिखा जाते हैँ.
जीवन के सारे रहस्य, खुलवा जाते हैँ.
प्रेम नहीँ तो जग- जीवन रीता-रेता सा,
ढाई आखर सुखद भविश्य दिखा जाते हैँ.
00000
चेहरे के पीछे इक है, अंजान् सा चेहरा.
दिखता बडा सुन्दर, लगे गूंगा, जंचे बहरा.
खामोश हो जब चल पडे, अग्यात मक़सद पर,
मंजिल के नाम पर मिला, क़ातिल वहाँ ठहरा
00000
( साहित्यकार-5 मेँ छपे मेरे मुक्तकोँ मेँ से

-दा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

Wednesday 17 July 2013

डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज' के मुक्तक

डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज' के मुक्तक :

                    (१)
बूजुर्ग    छाया   देते  हैं  पेड़  की  तरह
विचलन   रोकते हैं   वे  मेड की  तरह
मिल  गया   जिसे  भी  आशीष  उनका
मस्त   रहते  हैं  वे  अखिलेश  की तरह
                 (२)
हो  आप का जीवन भरा, खुशियों से हर इक पल
हंसते    व  झूमते      हुए  जाए    उमर   निकल
नफरत   है  ज़हर  ज़िन्दगी  में  मान   लीजिये
बस प्यार  ही  में,  प्यार से ही,   है जगत  सकल

                  (३)
जीना    हजार      साल   किसी  काम  का   नहीं
करोणो    का   हो सामान  किसी  कम  का  नहीं
है    प्यार   जिसके   पास  वो  बड़ा   अमीर     है
साधाव बिन  पद- नाम    किसी  काम  का  नहीं
-डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

CHHANIKA

डा .रघुनाथ मिश्र  'सहज' की छणिका 
ज़िन्दगी राई है/ सकारात्मक सोच है अगर
पढा/ सुना/ एहसास किया है/ अनेकोँ ने
पसीना आता है लेकिन
लागू करने मेँ
नकारात्मक हो/ आलस्यवश/ आराम तलब हो जाने से
यही ज़िन्दगी पहाड बन जती है.
- डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'


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Wednesday 10 July 2013

GHAZAL

देखा कुदरत का ऐसा कहर ना  कभी।
देखा गुस्से का ऐसा असर ना   कभी।  

यूँ  तो  आना  व  जाना  चला  ही  करे,
देखा होना यूँ  अंतिम सफ़र  ना कभी।

मार  डाले  न  छोड़े  किसी   भी  तरह,
देखी लहरों  में  ऐसी  लहर ना   कभी।

लेखनी  लिख   ग़ज़ल-गीत ऐसे  सदा,
हों   मुखर भाव  टूटे  बहर  ना  कभी।

कुछ  करें अब  असरदार  यारो  उठो,
बद्विचारों  को  लीले  ज़हर ना  कभी।

हों  'सहज'  जिंदगी जी लें जी भर सभी,
तू  बुराई  पे  हरगिज   ठहर  ना   कभी।   
-डा . रघुनाथ मिश्र 'सहज' 


Tuesday 9 July 2013

DR.RAGHUNATH MISRA 'SAHAJ' KI GHAZALEN

अक्ल       बिकती   नहीं  बाज़ार  में।
ज्ञान   मिलाता  नहीं   उपहार     में।

प्यार  दिल में   नहीं असली   अगर,
ह्रदय स्वीकारता नहीं   इज़हार  में।

मस्तिष्क से संभव नहीं जो हो सका,
ह्रदय   से    हो    गया    संसार      में।

भोर      घायल  दिखे     ख़बरों  में   है,
दिखें      बस      नफरतें    अख़बार में।

बनाने         की  मसक्कत  है  कठिन,
मज़े        पर       लो  न    बँटाढार   में।

कौन     कहता  है   चला   करता  नहीं,
सद्विचारों        का      असर  व्यापर में।
                       (२)

क्षमता    बड़ी      खाकर     पचाने    की।
श्रद्धा        नहीं               चोरी   बताने की।

लगा          दें      आप   पूरी  उम्र  सेवा में,
आदत        मिरी       न  कुछ  गंवाने   की।

बनाये      या     बिगाड़े       देश           कोई,
मिरी          मंसा          मुझे        बनाने  की।

अनेको      मर       मिटे          आवाम    पर,
मिरी         आदत       महज़     जन्चाने  की।

 नाचते        होंगे   उँगलियों         पर        कई ,
 मिरी         फितरत          रही       नाचने  की।

जिंदगी      भर         के    करम     हैं     सामने,
अक्ल        पर          आई      नहीं  पछताने की।

जा             रहीं        साँसें  जंचाकर      अंत   में,
है        घडी         पापों    की  सजा     पाने    की।
-डा.  रघुनाथ मिश्र 'सहज'

फेसबुक मैत्री सम्मलेन 29-30 सितम्बर 2012......सफल रहा ...:)


फेसबुक मैत्री सम्मलेन 29-30 सितम्बर 2012
पूनम की नज़र से 

आयोजक: ‘हम सब साथ साथ’ और ‘अपना घर’ 
स्थान : ‘अपना घर’ भरतपुर ,राजस्थान ,भारत
विशेष योगदान:किशोर श्रीवास्तव ,अशोक खत्री 

अपना घर,भरतपुर 



लगभग एक माह से फेसबुक पर इस आयोजन के होने की सूचना और इससे सम्बंधित गतिविधियों की गूँज हो रही थी जिसकी प्रतिध्वनि भारत के विभिन्न प्रान्तों से सुनी जा सकती थी|दिल्ली से ‘हम सब साथ साथ हैं पत्रिका के संपादक किशोर श्रीवास्तव एवं श्रीमती शशि श्रीवास्तव जी और बयाना से श्री अशोक खत्री जी के मार्गदर्शन में इस प्रोग्राम का आयोजन संभव हुआ|

मै और नरेश गोकुलधाम के दर्शन के बाद 


29 सितम्बर ........

मै(पूनम) और नरेश माटिया 29 सितम्बर कोमथुरा में गोकुल धाम के दर्शन कर भरतपुरलगभग दोपहर 4.30 बजे पहुंचे|  
अपना घर प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य 


29 सितम्बर की सुबह से कई फेसबुक मित्रगण वहाँ आने शुरू हो गये थे जिनमे सबसे पहले पहुँचने वाले थे उज्जैन से संदीप सृजन( ‘शब्द प्रवाह’ के संपादक) और उनके बाद लेखक /कवि डाक्टर ए.कीर्तिवर्धन (मुज़फ्फरनगर), प्रसिद्द व्यंग्यकार सुभाष चन्द्र (दिल्ली ),गज़लकार ओमप्रकाश यति (नॉएडा ), डाक्टर सुधाकर आशावादी ,कवि अतुल जैन सुराना और गाफ़िल स्वामी (अलीगढ ) भी ‘अपना घर’ पहुंचे |..दिल्ली से आने वाले मित्रों में किशोर श्रीवास्तव ,शशि श्रीवास्तव के साथ संगीता शर्मा (बच्चों सहित ),ऋचा मिश्रा (दैनिक जागरण,नॉएडा ) पूनम तुशामड , सुषमा भंडारी और मानव मेहता (हरियाणा से) आये| झाँसी से नवीन शुक्ला जी और भीलवाडा, भरतपुर, बाड़मेर तथा फतहपुर सीकरी से भी कई मित्र इसमें रात तक शामिल हो गये थे| 
विशाल भवन बेसहारों का सहारा 

 पीड़ित लड़कियों से बात करते हुए 
अपना घर के लोगों से मिलने को आतुर 
‘अपना घर ‘ से जुड़े हुएअशोक खत्री जीऔर अपना घर के संस्थापक डाक्टर दम्पति माधुरी जी एवं बी ऍम भारद्वाज जी के सफल निर्देशन में सभी आमंत्रित मेहमानों के रहने ,खाने पीने का बंदोबस्त किया गया था |5 बजे पंजीकरण और परिचय सत्र में सबने अपना-२ परिचय दे कर दो -दिवसीय आयोजन की शुरुआत की|चाय पीकर सभी ‘अपना घर’ संस्था के भ्रमण के लिए अशोक खत्री जी के साथ निकले जहाँ जिंदगी के वीभत्स किन्तु मार्मिक रूप से रु-ब-रु हुए| बातचीत के दौरान मानसिक रूप से परेशान बालिकाओं ,महिलाओं और वृद्धो से उनके हालात के बारे में पता चला कि कैसे जिंदगी ने और उनके अपनों ने ही उन्हें छला था | ‘अपना घर’ संस्था इन अजनबी, अनजान, मुसीबतों से ग्रस्त हर आयु के लोगो को रहने, खाने-पीने और उपचार तथा व्यवसाय की सुविधायें प्रदान कर सामाजिक कार्यों में बेहतरीन योगदान कर रही है| दिल्ली से आये प्रख्यात पत्रकार एवं कवि श्री सुरेश नीरव जी के शब्दों में‘अपना घर’ आना एक तीर्थ यात्रा के समान है | 

अपना घर भ्रमण के बाद एक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी जिसका विषय था“मैत्री भाईचारे के प्रचार प्रसार व साहित्यिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ में फेसबुक की उपयोगिता”| उदघोषणा किशोर श्रीवास्तव जी ने की और श्री सुभाष चन्द्र जी की अध्यक्षता में लगभग सभी सदस्यों ने ( सर्वश्री कीर्तिवर्धन , पूनम तुशामड , सुधाकर आशावादी , शशि श्रीवास्तव ,गाफिल स्वामी , सुषमा भंडारी , ऋचा मिश्रा , अशोक खत्री , पूनम माटिया और रघुनाथ मिश्र जी ने अपने विचार रखे और सबने लगभग यही बात कही कि फेसबुक एक उपयोगी माध्यम साबित हो रहा है इस सन्दर्भ में | अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में सुभाष जी ने कहा ‘फेसबुक तब अपनी बुलंदियों को पाता है जब उस से सरोकार जुड़े’ | अतुल जैन सुराना ने धन्यवाद ज्ञापन दिया |

विचार गोष्ठी 
रात्रि भोज के बाद गीत संगीत की महफ़िलजमी जिसमे किशोर जी ने ढोलक की थाप पर भजन और गीत प्रस्तुत किये तथा मिमिक्री से सबका मन मोह लिया |नवीन शुक्ला जी ने अपने मीठी बांसुरी की तान से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया | पूनम तुशामड , संगीता शर्मा , सुषमा भंडारी सभी ने अपने-२ स्टाइल में गीत सुनाये | सुभाष चन्द्र , ऋचा मिश्रा और कई मित्रों ने गज़ल सुनाकर महफ़िल में समा बाँधा |गाफ़िल जी ने माँ को समर्पित अपनी रचना बड़े जोर शोर से सुनाई | ढोलक की थाप ,ढपली और मजीरे की झंकार के साथ एक लोक गीत पर पूनम माटिया यानि मैने नृत्य भी किया |

30 सितम्बर 

कचोडी-आलू, जलेबी और पोहे के नाश्ते के साथ सबने किशोर श्रीवास्तव कृत“खरी-खरी” कार्टून प्रदर्शनी का भी लुत्फ़ उठाया | उस समय तक कई और फेसबुक मित्र भरतपुर पधार चुके थे जिनमे पुरुस्कृत अरविन्द ‘पथिक’, हेमलता वशिष्ठ, कृष्ण कान्त मधुर, पूनम त्यागी (दिल्ली)और अजय अज्ञात (फरीदाबाद) दिल्ली से प्रमुख हैं | प्रख्यात कवि सुरेश नीरव जी , प्रसिद्द गज़लकार साज़ देहलवी , डॉ रेखा व्यास (दिल्ली दूरदर्शन) , कवि रघुनाथ मिश्र (राजस्थान) इस आयोजन में शामिल हुए |

फतेहपुर सीकरी पर समूह तस्वीर 
सलीम चिश्ती की दरगाह 
‘अपना घर’ की ओर से आयोजितफतेहपुर सिकरी भ्रमण का लाभ 25-30 लोगो ने उठाया और तेज धूप के बावजूद सभी ने सलीम चिश्ती दरगाह और बुलंद दरवाजे का अवलोकन किया साथ ही खूब खरीदारी भी की |

नये मित्रों के साथ 
दरगाह की पौड़ी पर 

दोपहर के भोजन के उपरांतकवि सम्मलेन आयोजित किया गया जिसकासञ्चालन किशोर श्रीवास्तव और अरविन्द ‘पथिक’ ने किया |इस कवि सम्मलेन कीअध्क्षता श्री सुरेश नीरव जी ने की और मंच पर उनका साथ दिया गज़लकार साज़ देहलवी जी, रघुनाथ मिश्र जी और डॉ रेखा व्यास जी तथा भारद्वाज जी और माँ माधुरी जी ने | इन महान विभूतियों के कर-कमलों द्वारा ‘हम साथ-साथ है’ पत्रिका द्वारा आयोजित मैत्री सम्मान श्री सुरेश नीरव जी को और श्रीमती पूनम माटिया को दिया गया | उसके उपरान्त विभिन्न कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया जिसको श्रोतायो ने बड़े मन लगाकर सुना और समय-२ तालियों से उनका हौसला वर्धन किया | इस दौरान सुषमा भंडारी जी का काव्य संग्रह ‘अक्सर ऐसा भी’ का विमोचन भी किया |

श्रेष्ठ जनों द्वारा पुरुस्कृत होते हुए मै 
श्री सुरेश' नीरव' जी ,श्री रघुनाथ मिश्र जी एवं हम साथ साथ हैं की संपादक श्रीमति शशि श्रीवास्तव 
कविता पाठ और ग़ज़ल गायकी का क्रम मुझसे यानि पूनम माटिया से आरंभ हुआ और उसके बाद संदीप सृजन , अतुल जय सुराना ,दीक्षित जी, अजय ‘अज्ञात’ ,पूनम तुशामद ,सुषमा भंडारी, संगीता शर्मा, ऋचा मिश्रा ,किशोर श्रीवास्तव , कृष्ण कान्त मधुर , ओम प्रकाश यति, गाफ़िल स्वामी, अशोक खत्री जी और अरविन्द ‘पथिक’ जी की  जोश से भरी गायकी तक चला | अंत में रघुनाथ मिश्र जी और साज़ देहलवी जी , रेखा व्यास जी और श्री सुरेश ‘नीरव’ जी ने अपनी भावनात्मक गज़लों से सबका मन मोह लिया | किशोर श्रीवास्तव जी ने धन्यवाद ज्ञापन देकर इस आयोजन की समाप्ति की घोषणा की |

मुझसे फिर जल्दी आने की कहते हुए :)
कार्यक्रम के अंत में ‘अपना घर’ के संस्थापक डॉ भारद्वाज दंपत्ति ने प्रतीक चिन्ह देकर आये हुए सभी मित्रों को सम्मानित किया |

विदा के पल ‘अपना घर’ के वासियों के लिए और हमारे लिए काफी भावुक थे उनकी निगा